साइबर अटैक के पीछे अमरीका ने बताया रूस का हाथ, भविष्य को लेकर दी यह चेतावनी
अमरीकी सरकार ने रूस की सेना पर 'इतिहास का सबसे विनाशकारी और महंगा साइबर हमला' करने का आरोप लगाया है।

नई दिल्ली। अमरीकी सरकार ने रूस की सेना पर 'इतिहास का सबसे विनाशकारी और महंगा साइबर हमला' करने का आरोप लगाया है, लेकिन इसका कोई सबूत पेश नहीं किया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, गुरुवार को ब्रिटिश विदेश मंत्रालय ने कहा कि जून 2017 में हुए नोटपेटा साइबर हमले के पीछे भी रूस सरकार का हाथ था। ब्रिटेन के इस आरोप के कुछ घंटे बाद ही अमरीका ने यह दावा किया। क्रेमलिन ने "स्पष्ट रूप से" ब्रिटेन के आरोपों को खारिज कर दिया है।
रूसी प्रवक्ता ने बताया आधारहीन
क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने कहा कि हम उन आरोपों को अप्रमाणित और आधारहीन मानते हैं। पेस्कोव ने कहा कि यह निराधार आरोपों के जरिए रूसोफोबिया अभियान को आगे बढ़ाने का एक और तरीका है। अमरीकी प्रेस सचिव की तरफ से जारी बयान के अनुसार, इस प्रकार के साइबर हमले से यूरोप, एशिया और अमरीका को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ है। बयान में कहा गया है कि यह हमला यूक्रेन को अस्थिर करने का क्रेमलिन के प्रयासों का एक हिस्सा था और यह हमला उस इलाके में चल रहे संघर्ष में रूस की भागीदारी को दर्शाता है। नोटपेटा नामक वायरस के हमले से कई कंप्यूटर प्रणालियों पर प्रभाव पड़ा था। यह सबसे पहले यूक्रेन में हुआ, लेकिन बाद यह रूस समेत कई देशों में फैल गया था।
ब्रिटेन के आरोपों को भी किया खारिज
वहीं, क्रेमलिन ने गुरुवार को ब्रिटिश विदेश विभाग के उन आरोपों को खारिज कर दिया, जिनमें कहा गया है कि जून 2017 के 'नोटपेटा' साइबर हमले के पीछे रूस सरकार का हाथ था। रूसी मीडिया ने क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव के हवाले से बताया कि हम इस तरह के आरोपों को स्पष्ट रूप से खारिज करते हैं और हम उन्हें निराधार मानते हैं। उन्होंने कहा कि बगैर किसी सबूत के यह केवल रशियोफोबिक अभियान से ज्यादा कुछ नहीं है।
एक बयान में गुरुवार को ब्रिटिश विदेश कार्यालय के मंत्री लॉर्ड अहमद ने रूस सरकार और क्रेमलिन को 'नोटपेटा' साइबर हमले का जिम्मेदार बताया और साथ ही कहा था कि ब्रिटेन और उसके सहयोगी दुर्भावनापूर्ण साइबर गतिविधि बर्दाश्त नहीं करेंगे। पिछले साल कई कंप्यूटर प्रणालियों को एक साथ बाधित करने वाला 'नोटपेटा' नामक मैलवेयर की जानकारी सबसे पहले यूक्रेन में आई, लेकिन इसके बाद यह वायरस रूस सहित कई अन्य देशों में फैल गया था।
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