नहीं किया दोबारा रायबरेली का रुख ऐसा नहीं है कि अब तक गांधी-नेहरू परिवार का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट पर कांग्रेस को कभी हार नहीं मिली। इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें, तो 1977 में अमेठी हारने वाले संजय गांधी ने 1980 में दोबारा इस सीट से चुनाव लड़कर अमेठी फतह किया था। 1977 में संजय गांधी के जनता पार्टी के रविंद्र प्रताप ने हराया था। वहीं राहुल की दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 1977 में रायबरेली से मात मिली थी। उसके बाद उन्होंने कभी इस क्षेत्र का रुख नहीं किया। 1967 के आम चुनावों में इंदिरा गांधी को यहां से जीत मिली। इसके बाद 1971 में भी उन्होंने रायबरेली फतेह किया। लेकिन 1975 में आपातकाल लागू करने के दो साल बाद उन्हें रायबरेली की जनता ने नकार दिया। जनता पार्टी के राजनारायण ने उन्हें 55, 202 वोटों से हराया था। यहां से चुनाव हारने के बाद इंदिरा गांधी ने दोबारा इस सीट की तरफ मुड़ कर नहीं देखा।
ये भी पढ़ें: अमेठी सीट का रोचक इतिहास, 16 बार कांग्रेस ने लहराया जीत का परचम, सिर्फ एक बार जीती बीजेपी कर्नाटक में हासिल की जीत रायबरेली से हारने के बाद 1978 में इंदिरा गांधी ने दक्षिण का रुख किया। यहां उन्होंने कर्नाटक की चिकमगलूर सीट चुनी। आपात्काल के तत्काल बाद हुए इस चुनाव में इंदिरा गांधी हर हाल में जीतना चाहती थीं। कहते हैं कि राजनीति में नारों का अहम योगदान होता है।ऐसे में उनके लिए नारा तैयार किया गया था, जो कि कुछ इस प्रकार था- ‘एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमगलूर चिकमगलूर।’ यह उपचुनाव था जिसमें इंदिरा गांधी कर्नाटक के चिकमगलूर से पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल के खिलाफ उम्मीदवार थीं। वह इमरजेंसी के तत्काल बाद का दौर था। इंदिरा गांधी के खिलाफ चौतरफा विरोध था। ऐसे में वे अपने लिए सुरक्षित सीट तलाश रही थीं, जो चिकमगलूर पर आकर खत्म हुई। इस सीट पर इंदिरा गांधी ने 77 हजार से ज्यादा वोटों के मतों से जीत हासिल की थी। 1980 में इंदिरा गांधी ने दोबारा दक्षिण की सीट को चुना और आंध्र प्रदेश की मेडक लोकसभा सीट पर जनता पार्टी के कद्दावर नेता जयपाल रेड्डी को मात दी।
हार के बाद दोबारा जीत दर्ज की थी संजय गांधी ने दिलचस्प बात है कि 1984 तक जब तक इंदिरा गांधी जिंदा रहीं, उन्होंने दोबारा रायबरेली का रुख कभी नहीं किया और मेडक से ही सांसद बनी रहीं। 1977 से अमेठी सीट से संजय गांधी को जनता पार्टी के रविंद्र प्रताप सिंह ने हराया था। लेकिन 1980 के चुनाव में उन्होंने खुद को इस सीट से फिर से खड़ा किया और चुनाव जीत गए। कुछ वक्त बाद हवाई दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
संजय गांधी के निधन के बाद उनके बड़े भाई राजीव गांधी सक्रिय राजनीति में आए। उन्होंने भी अमेठी को ही चुनाव और 1981 से लेकर 1991 तक वे यहां से सांसद बने रहे। उनके निधन के बाद यह सीट फिर खाली हो गई। 1999 में सोनिया गांधी ने यहां से चुनाव लड़ा और 2004 तक सांसद बनी रहीं। हालांकि, इसके बाद सोनिया गांधी ने अमेठी सीट राहुल गांधी के लिए छोड़ दी और खुद रायबरेली चली गईं, जहां से वह अब तक सांसद हैं।