इमाम हुसैन शहीदे आजम कान्फ्रेंस की याद में मनाया जाने वाला दिन यजीद ने इमाम हुसैन से कहा कि आप मेरे काफिले नही आएंगे, तो आपको जंग भी करना पड़ेगा। इमाम हुसैन ने फ़रमाया की मैं सर तो कटा सकता हूं, लेकिन में आपके हाथ मे हाथ नहीं दे सकता हूं। ये मामला कुछ दिनों तक चलता रहा। अगले दिन 10 तारीख को जुमा का दिन था। सुबह फज्र की नमाज अदा करने के बाद जुमे की नमाज अदा की गई। उसके बाद खुदबा खत्म होता है और फिर इमाम हुसैन नमाज की नीयत करते हैं। उसके बाद सज्दा करते हैं सज्दा करते ही यजीद पीछे से तलवार से वॉर करते है और इमाम हुसैन का सर गर्दन से जुदा हो जाता है और वो शाहिद हो जाते हैं। उन्हीं की याद में दुनिया भर में मुस्लिम समुदाय के लोग शहीदे आजम कान्फ्रेंस मनाते हैं और उनकी याद ताजा करने के लिए तक़रीर व बयान सुनते हैं।
इमाम हुसैन के नाम से जगह-जगह सरबत, छबील, खिछड व बियारानी बांटा जाता है। उनके याद में लोग रोजा भी 10 दिन तक रखते हैं। कुछ लोग इमाम हुसैन की याद में पाक भी बनते हैं। उनका मानना होता है कि अगर मेरी मन्नत पूरी हो जाएगी तो में आपकी याद में जो हो सकेगा करूंगा। मोहर्रम को मुस्लमान नए साल के रूप भी मानते हैं और मोहर्रम को इमाम हुसैन शहीदे आजम कान्फ्रेंस की याद में मनाया जाता है।