इतिहासवेत्ता के अनुसार विद्रोह के आरोप में सीताराम पांडे का पुत्र अनंतीराम पकड़ा गया और उसे उन्हीं के सामने ही गोली मारी गई। सेवानिवृत के बाद वह पेंशन के सिलसिले में अधिकारियों के यहां जाया करते थे और उसी दौरान उनके किस्सागोई स्वभाव को देखते हुए लेफ्टिनेंट कर्नल जेम्स नारगेट ने उन्हें किताब लिखने के लिए प्रेरित किया।बाद में पुस्तक से प्रभावित होकर 1910 में लेफ्टिनेंट कर्नल फिलट ने किताब अंग्रेजी सेना में भर्ती होने वालों के लिए अनिवार्य कर दी। फिलट ने इसका अनुवाद उर्दू में कराया और यह पुस्तक फौजी अखबार में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुई।इंग्लैंड में पुस्तक के लेखक और इसकी प्रमाणिकता को लेकर साहित्यकारों में काफी बहस भी हुई। अवधी के वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश पीयूष कहते हैं कि किस्सा सीताराम पांडे सूबेदार अवधी की पहली आत्मकथा है। यह एक एतिहासिक ग्रंथ है और उसकी पांडुलिपि खोजने के लिए सरकार को प्रयास करना चाहिए।