केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी यूं तो अमेठी के सियासी दंगल की पराजित नेता हैं लेकिन अपनी हार के बाद से वे अमेठी में लगातार सक्रिय हैं और समय-समय पर यहां आती रहती हैं। 4 जनवरी को नए साल के आगाज़ पर स्मृति ईरानी अमेठी आईं, तो उनके हाथों में गौरीगंज स्थित संयुक्त अस्पताल के लिए ‘सिटी स्केन’ मशीन की सौगात थी। ये सौगात अमेठीवासियों के लिए किसी ‘हीरे’ से कम नहीं थी। वो इसलिए कि अमेठी जैसे वीवीआईपी जिले में इस मशीन के न होने से जिलेवासियों को लखनऊ, रायबरेली जिलों में जाकर धक्के खाने पड़ते थे।
ठप रह गए सारे वादे इसके पहले वे 23 दिसम्बर 2018 को भी अमेठी लोकसभा के सलोन तहसील के छतोह ब्लाक पर आईं थीं। यहां पर उन्होंने 100 कुम्हारों को इलेक्ट्रिक चाक और 50 मधुमक्खी पालकों को 500 मधुमक्खी बक्सों का वितरण किया था। वो यहां वादा कर गई थीं कि धान की भूसी द्वारा गाय के गोबर के द्वारा कागज बनाने का भी काम भी छतोह ब्लाक में किया जाएगा। लिज्जत पापड़ बनाने के लिए भी महिलाओं को मौका दिलाएगी। इससे ठीक 36 दिन पहले 19 नवम्बर को उन्होंने अमेठी में अलग-अलग विकास योजनाओं के लिए 80 करोड़ रुपए की कार्य योजना का शिलान्यास और उदघाटन किया था।
बीजेपी से कम दोषी नहीं कांग्रेस केंद्र में बीजेपी की जब से सरकार आई है तबसे अमेठी को लेकर कांग्रेस के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स उनसे छिन गए हैं। पेपर मिल, मेगा फूड पार्क, ट्रिपल आईटी सरीखे ड्रीम प्रोजेक्ट्स यूपीए सरकार के वो काम हैं, जिसके लिए कांग्रेसियों का रोना सुबह-शाम का है। बता दें कि वाराणसी-लखनऊ रेल ट्रैक का दोहरीकरण यूपीए सरकार का ही काम है जो दस सालों में शुरू न होकर अब पूरा कराया जा रहा। हालांकि ये सेम प्रोजेक्ट यूपीए सरकार में अमेठी से सटे सुल्तानपुर जिले में पारित हुआ और आज ट्रेने इस पर फर्राटा भर रही।