केंद्र सरकार ने दुर्लभ खनिजों की खानों को पर्यावरणीय मंजूरी देने से पहले जनसुनवाई की बाध्यता को खत्म कर दिया है।
अलवर। केंद्र सरकार ने दुर्लभ खनिजों की खानों को पर्यावरणीय मंजूरी देने से पहले जनसुनवाई (पब्लिक कंसलटेशन) की बाध्यता को खत्म कर दिया है। भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में इसे महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। रक्षा, परमाणु और अत्याधुनिक उद्योगों के लिए यह खनिज बहुत जरूरी हैं। करीब 30 धातुओं पर इस आदेश का सीधा असर होगा।
राजस्थान और खासकर अलवर पर भी इस आदेश का प्रभाव पड़ेगा। अलवर में भी तांबा अयस्क जैसे कई खनिज निकलते हैं। साथ ही यहां पर सोना और चांदी की भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा सरिस्का और थानागाजी क्षेत्रों में खोज की गई है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से फिलहाल कई खानें बंद पड़ी हैं।
नए नियम से खनन परियोजनाओं की मंजूरी प्रक्रिया में एक साल तक की बचत होगी। अब ये परियोजनाएं सीधे केंद्रीय स्तर पर मंजूर की जाएगी। वैसे पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) में सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों को संबोधित करना अनिवार्य रहेगा।
जनसुनवाई का प्रावधान होने की वजह से कई बार खानों को मंजूरी देने में तीन से बारह महीने की देरी हो रही थी। अब इसमें कम समय लगेगा। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना 2006 के तहत जनसुनवाई की जाती है। इस प्रक्रिया में स्थानीय जनसमुदाय, गैर सरकारी संगठनों के साथ अन्य पक्षों को संबंधित परियोजना के पर्यावरणीय, सामाजिक और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर आपत्तियां और राय ली जाती है। इसके लिए कम से कम 30 दिन का नोटिस देना पड़ता है।
केंद्र सरकार के स्तर पर दुर्लभ खनिजों के खनन की पर्यावरणीय मंजूरी से पहले जनसुनवाई करने की बाध्यता को हटाया गया है। इस नए आदेश के अनुसार ही आगे काम किया जाएगा।
-पुष्पेंद्र सिंह, सहायक खनिज अभियंता, अलवर