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Shattila Ekadashi Puja Vidhi: षट्तिला एकादशी पर भूलकर भी न छूएं ये 2 चीजें, जानें धर्म ग्रंथों ने क्यों लगाई है रोक

Shattila Ekadashi Puja Vidhi: षट्तिला एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोड़ना और इस दिन तुलसी (Tulsi Puja) के पौधे को जल अर्पित करना दोनों ही कार्य वर्जित माने गए हैं। यहां जानिए अनीष व्यास जी से..

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Jan 18, 2025
Shattila Ekadashi Puja Vidhi

Shattila Ekadashi Puja Vidhi:षट्तिला एकादशीभगवान विष्णु की प्रिय एकादशी तिथियों में से एक मानी जाती है। इसका व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही घर में सुख-समृद्धि आती है। लेकिन वहीं ज्योतिषाचार्य अनीष जी के अनुसार इस शुभ दिन पर तुलसी को जल आर्पित करना या छूना भी पाप माना जाता है। तो आइए जानते हैं पूरी जानकारी

एकादशी के दिन इन चीजों का न करें स्पर्श (Do not touch these things on the day of Ekadashi)

डॉ अनीष व्यास ने बताया कि एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित होता है तो इस दिन चावल से बनी चीजों का भी सेवन न करें। एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करें। एकादशी के दिन तुलसी को स्पर्श न करें और न ही जल अर्पित करें। एकादशी के दिन वाद-विवाद न करें और न ही किसी के लिए मन में बुरे ख्याल लेकर आएं। एकादशी के दिन तामसिक चीजों से दूर रहें।

पुराणों में उल्लेखित है एकादशी व्रत की महिमा (The glory of Ekadashi fast is mentioned in the Puranas)

डा. अनीष व्यास ने बताया कि स्कन्द पुराण में कहा गया है कि हरिवासर यानी एकादशी और द्वादशी व्रत के बिना तपस्या, तीर्थ स्थान या किसी तरह के पुण्याचरण द्वारा मुक्ति नहीं होती। पदम पुराण का कहना है कि जो व्यक्ति इच्छा या न चाहते हुए भी एकादशी उपवास करता है, वो सभी पापों से मुक्त होकर परम धाम वैकुंठ धाम प्राप्त करता है।

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था एकदशी व्रत का महत्व (Shri Krishna had told Yudhishthir the importance of Ekadashi fast)

कात्यायन स्मृति में जिक्र किया गया है कि आठ साल की उम्र से अस्सी साल तक के सभी स्त्री-पुरुषों के लिए बिना किसी भेद के एकादशी में उपवास करना कर्त्तव्य है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सभी पापों ओर दोषों से बचने के लिए 24 एकादशियों के नाम और उनका महत्व बताया है।

तीन तरह के पापों से मिलती है मुक्ति (One gets salvation from three types of sins)

यहां तक कि अगर आप व्रत नहीं कर सकते तो सिर्फ कथा सुनने से भी वाजपेय यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है। यह व्रत वाचिक, मानसिक और शारीरिक तीनों तरह के पापों से मुक्ति दिलाता है। इस व्रत का फल कन्यादान, हजारों सालों की तपस्या और यज्ञों के बराबर माना गया है।

डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका www.patrika.com दावा नहीं करता है। इन्हें अपनाने या इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

Published on:
18 Jan 2025 05:35 pm
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