चिकित्सा विभाग ने वागड की लगती सीमा वाले क्षेत्र में उदयपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात वाले क्षेत्रों में चिकित्सा विभाग की टीम को अलर्ट कर दिया है। गनीमत है कि डूंगरपुर में अब तक एक भी केस सामने नहीं आ पाया है।
गुजरात और मेवाड़ में चांदीपुरा वायरस से संक्रमित संदिग्ध बच्चे मिलने के साथ ही वागड अंचल की सीमा के आस-पास कुछ बच्चों के संक्रमण के बाद मृत्यु होने की भी जानकारी है। चांदीपुरा वायरस के तेजी से फैलने के मद्देनजर डूंगरपुर चिकित्सा महकमा भी हाई एलर्ट हो गया है।
चिकित्सा विभाग ने वागड की लगती सीमा वाले क्षेत्र में उदयपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात वाले क्षेत्रों में चिकित्सा विभाग की टीम को अलर्ट कर दिया है। गनीमत है कि डूंगरपुर में अब तक एक भी केस सामने नहीं आ पाया है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. अलंकार गुप्ता ने बताया कि किसी भी बच्चे को तेज बुखार, उल्टी व ऐंठन जैसे लक्षण हो, तो उसे तुरंत चिकित्सक से परामर्श कर उपचार कर उपचार करवाना होगा। मामूली लक्षण पर भी घर में उपचार करने से बेहतर है तुरंत नजदीकी चिकित्सालय में पहुंचे।
मानसून में चांदीपुरा वायरस जैसे लक्षणों को लेकर गुजरात सरकार से राजस्थान चिकित्सा विभाग जयपुर को भेजे गए पत्र के बाद चिकित्सा विभाग ने बीमारी पर अलर्टजारी कर दिया है। इसके मद्देनजर डूंगरपुर मे घर-घर सर्वे करने वाली कुल 535 टीम सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं। जिले में स्वास्थ्य दल मलेरिया, डेंगू, डायरिया, बुखार के मामलों की जांच पहले से ही कर रहे हैं। सीएमएचओ गुप्ता ने बताया कि अभी तक एक भी केस नहीं आया है। पर, आशा सहयोगिनी, एएनएम के माध्यम से जिले में सतत निगरानी रखी जा रही है।
चांदीपुरा वायरस एक आरएनए वायरस है। यह वायरस सबसे अधिक मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से ही फैलता है। मच्छर में एडीज ही इसके पीछे ज्यादातर जिम्मेदार है। 15 साल से कम उम्र के बच्चे सबसे ज्यादा इसका शिकार होते हैं। उन्हीं में मृत्यु दर भी सबसे ज्यादा रहती है।
मस्तिष्क में सूजन के बाद तेज बुखार, उल्टी, ऐंठन व मानसिक रोग होना भी संभव है। चांदीपुरा वायरस के संक्रमण से कोशिकाओं में फॉस्फेटेस और टेनसिन होमलोग (पीटीईएन) पदार्थ का सिक्रीशन कम हो जाता है। इससे मस्तिष्क में सूजन आ जाती है। तेज बुखार, उल्टी, ऐंठन और मानसिक बीमारियां आ जाती हैं। मरीजों में इंसेफेलाइटिस के लक्षण भी दिखने लगते हैं और मरीज कोमा में चला जाता है। कई बार मौत तक हो जाती है।