भारतीय वायुसेना दिवस विशेष : ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जरूरत महसूस हुई आर-77 के साथ अत्याधुनिक मीटियोर मिसाइल और ब्रह्मोस की जगह लॉरा मिसाइल से लैस करने की तैयारी
जोधपुर। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जोधपुर सहित पूरे पश्चिमी क्षेत्र में तैनात सुखोई-30 एमकेआइ लड़ाकू विमानों ने पाकिस्तान को धूल चटाने में मुख्य भूमिका निभाई थी। करीब एक दर्जन पाक एयरबेस को सुखोई विमानों ने ही ब्रह्मोस मिसाइल दागकर तबाह किया था।
हालांकि इस दौरान भारतीय वायुसेना को कुछ सबक भी मिले हैं, जिसके चलते सुखोई को मिसाइल की तरह सुपरसोनिक मिनी बॉम्बर बनाने की तैयारी की जा रही है। सबसे पहले जोधपुर वायुसेना स्टेशन स्थित सुखोई की स्क्वाड्रन 'लॉयन्स' को अपग्रेड किया जाएगा।
वर्तमान में हवा से हवा में मार करने के लिए सुखोई के पास रूस की आर-77 मिसाइल है, जो 110 किलोमीटर तक हवा में ऑब्जेक्ट को मार सकती है। अब इसके विकल्प के तौर पर मीटियोर मिसाइल को लेकर यूरोपियन रक्षा निर्माताओं से बातचीत चल रही है। मीटियोर मिसाइल की क्षमता दो सौ किलोमीटर से अधिक है।
साथ ही डीआरडीओ की ओर से विकसित अस्त्र श्रेणी की मिसाइलें, जो 110 से 160 किलोमीटर तक हमला करती हैं, को भी सुखोई के लिए अनुकूलित बनाया जा रहा है। इसके अलावा स्वदेशी रडार को लेकर भी योजना है, जिससे सुखोई को इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर में जेमिंग से लड़ने में अधिक मदद मिल सके।
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इजराइली लॉरा मिसाइल को ब्रह्मोस का विकल्प बनाने की तैयारी है। इसको लेकर इजराइली कंपनी से बातचीत चल रही है। दरअसल ब्रह्मोस ढाई टन वजनी मिसाइल है और एक बार में एक ही मिसाइल को ले जाया जा सकता है, जबकि लॉरा एक से डेढ़ टन की है। ऐसे में सुखोई एक बार में दो मिसाइल ले जा सकता है।
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इससे सुखोई खुद मिनी बॉम्बर की तरह काम करेगा। ब्रह्मोस 300 किमी तक जबकि लॉरा की रेंज करीब 450 किमी है। जोधपुर के अलावा बाड़मेर के उत्तरलाई में भी मिग-21 की जगह सुखोई की स्क्वाड्रन तैनात की गई है। जोधपुर की स्क्वाड्रन उत्तरलाई की स्क्वाड्रन के बैकअप के तौर पर काम करती है। आपको बता दें कि 8 अक्टूबर 1932 को भारतीय वायु सेना की स्थापना हुई थी।