आम जनता अब राहत की सांस ले सकती है कि उन पर खौफ का साया काफी हद तक दूर हो गया है।
पिछले 23 महीनों में 2200 से ज्यादा नक्सलियों के मुख्यधारा में शामिल होने को सुखद बयार ही कहा जाएगा। इतनी बड़ी संख्या में नक्सलियों के आत्समर्पण के पीछे बड़ी वजह यह भी है कि नक्सलवाद को समाप्त करने की दिशा में सरकारी प्रयास भी इच्छा शक्ति के साथ आगे बढ़ रहे हैं। नक्सलियों के खिलाफ तय समय सीमा के साथ शुरू हुए इस अभियान का नतीजा है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों का परिदृश्य काफी बदल गया है। पिछले दो दिन में ही दो दर्जन दुर्दांत नक्सलियों के आत्मसमर्पण के रूप में यह बदलाव साफ दृष्टिगोचर हुआ है। खास बात यह है कि नक्सली गढ़ कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश में तो नक्सलियों के समर्पण के उदाहरण सामने आते ही रहते हैं पर पहली बार है जब मध्यप्रदेश की धरती पर नक्सलियों का सामूहिक आत्मसमर्पण हुआ है।
छत्तीसगढ़ की सीमा से लगा मध्यप्रदेश का बालाघाट नक्सलियों के निशाने पर रहता आया है। इसी जगह रविवार को एक-एक करके दस नक्सलियों ने सुरक्षा बलों के सामने हथियार डाल दिए। सरेंडर करने वाले सभी पर मिलाकर पांच करोड़ रुपए से ज्यादा का इनाम था। ये सभी दर्जनों हत्याओं में लिप्त रहे थे और आम लोगों के बीच दहशत का पर्याय बने हुए थे। आम जनता अब राहत की सांस ले सकती है कि उन पर खौफ का साया काफी हद तक दूर हो गया है। केंद्र सरकार ने नक्सलवाद को खत्म करने के लिए 31 मार्च 2026 की समय सीमा निर्धारित की है। समय सीमा पर लक्ष्य की प्राप्ति हो जाए, इसके लिए व्यापक स्तर पर मोर्चा खोला हुआ है। नक्सलियों की धरपकड़ के लिए छापेमार कार्रवाई, उनसे दो-दो हाथ करने में सरकार ने कोई गुरेज नहीं दिखाया है। इस एक साल में 275 नक्सलियों को मौत के घाट उतारना इसका प्रमाण है कि हमारे सुरक्षा बलों ने नक्सलियों की कमर तोड़कर रख दी है। एक संदेश साफ तौर पर नक्सलियों में गया है कि अगर वे अपने रुख पर अड़े रहेंगे तो आज नहीं तो कल सुरक्षा बलों की गोली उन्हें लहूलुहान कर देगी। ऐसे में उनके पास यही रास्ता है कि वे अपने आपको कानून के हवाले कर दें, जैसा कि वे कर भी रहे हैं। समर्पण का सिलसिला और संख्या बढऩे का एक और अहम कारण यह है कि नक्सलियों में ही इस स्वीकारोक्ति का भाव आ गया है कि वे गलत विचारधारा के पथ पर थे। अपनी हिंसात्मक गतिविधियों के कारण न केवल वे समाज की मुख्यधारा से कटे हैं बल्कि खुद और देश का भी लंबे समय तक व्यापक नुकसान किया है।
नक्सलवाद के खात्मे की दिशा में किए जा रहे ये प्रयास देश के लिए खुशगवार है। नक्सलवाद से नाता तोड़ मुख्यधारा में आने वाले और भविष्य में आना चाहने वालों के पुनर्वास की भी चुनौती है। इन्हें ऐसा माहौल देना होगा जिसमें सिर्फ जंगल, जमीन, जल और संसाधन ही नहीं पूरा देश अपना लगे। सही मायने में देश उनके लिए हो और वे देश के लिए।