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नेताओं द्वारा बात-बात पर संसद नहीं चलने देना, सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के बीच आपसी समन्वय की कमी को उजागर करता है। विपक्ष द्वारा जब भी कोई विवादास्पद मुद्दा उठाया जाता है, तो सरकार बहस करने से कतराती है। इसका परिणाम होता है, आचरण नियमों का उल्लंघन और संसद की कार्यवाही बाधित होना। लोकतांत्रिक रवैया अपनाते हुए सरकार को विपक्ष को स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अवसर देना चाहिए।
-प्रकाश भगत, कुचामन सिटी
नेताओं द्वारा संसद की कार्रवाई में बाधा डालना और पक्ष-विपक्ष के सांसदों में टकराव की स्थिति उत्पन्न करना, लोकतांत्रिक परंपराओं और संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। यह लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतिकूल है।
संसद की कार्रवाई को बार-बार बाधित करना लोक सेवक के कर्तव्यों के प्रति लापरवाही का प्रतीक है। ऐसे नेताओं के खिलाफ उसी तरह कार्रवाई होनी चाहिए, जैसे किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ होती है।
संसद में हंगामा करने वाले सांसदों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। जो नेता संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं, उन्हें तत्काल अयोग्य घोषित कर उनके स्थान पर नए प्रतिनिधि चुने जाने चाहिए।
सांसदों के असंसदीय आचरण से संसद की गरिमा को ठेस पहुंचती है। इससे न केवल सरकारी कार्य बाधित होते हैं, बल्कि लोकतंत्र के मूल सिद्धांत भी प्रभावित होते हैं।
संसद में बहस आवश्यक है, लेकिन हाल की घटनाएं दिखाती हैं कि अनावश्यक हंगामे से देश के विकास में बाधा पहुंचती है। सांसदों को संयम और संवाद की शैली अपनानी चाहिए।
संसद का सुचारू रूप से संचालन देशहित में सर्वोपरि है। विवादों के बावजूद कार्यवाही जारी रखना आवश्यक है, क्योंकि संसद का समय अमूल्य है।
संसद का कार्य बाधित करना नेताओं की मर्यादा और जिम्मेदारी के खिलाफ है। संसद के ठहरने से देश का विकास प्रभावित होता है।
बार-बार संसद की कार्यवाही बाधित करने से लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों का पतन होता है। लोककल्याण के कार्यों के लिए निर्धारित समय व्यर्थ विवादों में खर्च हो जाता है।
संसद, लोकतंत्र का मंदिर है, जहां देश और जनता के हित के लिए निर्णय लिए जाते हैं। नेताओं को संसद की गरिमा बनाए रखते हुए संवाद और विचार-विमर्श के माध्यम से समाधान निकालना चाहिए।
भारतीय संसद देश की सर्वोच्च संस्था है। नेताओं को यह समझना चाहिए कि संसद के समय और संसाधनों का सदुपयोग करना उनकी जिम्मेदारी है।