सीकर. सरकारी स्कूलों के बच्चों के साथ सरकार ‘रंगभेद’ की नीति अपना रही है। ये भेद सामान्य व संस्कृत स्कूलों के बच्चों के बीच किया जा रहा है। दरअसल, सरकार सामान्य सरकारी स्कूलों के लिए रंगीन तो संस्कृत स्कूलों के बच्चों को ब्लेक एंड व्हाइट वर्क बुक दे रही है। जिसे संस्कृत स्कूलों के बच्चों […]
सीकर. सरकारी स्कूलों के बच्चों के साथ सरकार 'रंगभेद' की नीति अपना रही है। ये भेद सामान्य व संस्कृत स्कूलों के बच्चों के बीच किया जा रहा है। दरअसल, सरकार सामान्य सरकारी स्कूलों के लिए रंगीन तो संस्कृत स्कूलों के बच्चों को ब्लेक एंड व्हाइट वर्क बुक दे रही है। जिसे संस्कृत स्कूलों के बच्चों के प्रति भेदभाव के रूप में देखा जा रहा है। संस्कृत शिक्षक संगठनों ने इस संबंध में सरकार को ज्ञापन भी भेजा है।
सरकारी स्कूलों में वर्क बुक कक्षा तीन से आठ तक के बच्चों को निशुल्क दी जाती है। इसमें पहले सवाल लिखे होते हैं। फिर चित्र, डिजाइन या खाली स्थान के संकेत से जवाब पूछे जाते हैं। वर्क बुक से पढ़ाई आसान होने के साथ ये बच्चों के लिए रुचिकर भी होती है। पर सामान्य शिक्षा से मिलने वाली हिंदी, अंग्रेजी व गणित की पुस्तकें तो रंगीन, लेकिन संस्कृत शिक्षा विभाग से मिलने वाली संस्कृत की वर्क बुक बच्चों को ब्लेक एंड व्हाइट दी जा रही है।
सरकारी स्कूलों में वर्क बुक की शुरुआत कोरोना काल में हुई थी। पढ़ाई को आसान व रुचिकर बनाने के लिए ये कवायद शुरू की गई थी। जिसके बेहतर परिणाम को देखते हुए कोरोना काल के बाद भी इसे अपनाया जा रहा है।शिक्षकों ने उठाई मांगसंस्कृत स्कूल के शिक्षकों ने संस्कृत की भी रंगीन किताबों की मांग की है। उनका कहना है कि रंगीन चित्र व डायग्राम वाली किताबें बच्चों को ज्यादा आकर्षित करती है। उनमें किताब पढ़ने की रुचि भी बढ़ती है। लिहाजा सरकार को सारी वर्क बुक रंगीन ही देनी चाहिए।
छोटे बच्चों को रंगीन चित्र व डायग्राम ज्यादा लुभाते हैं। ऐसे में पढ़ने के लिए भी बच्चें रंगीन वर्क बुक ज्यादा पसंद करते हैं। हमने उच्च अधिकारियों से मांग की है कि सामान्य शिक्षा की तरह संस्कृत शिक्षा में भी बच्चों को रंगीन वर्क बुक मिलनी चाहिए।अनिल भारद्वाज, संभागीय अध्यक्ष, संस्कृत शिक्षा विभागीय शिक्षक संघ, सीकर।