जयपुर . राजस्थान विश्वविद्यालय ने वैदिक कालीन शास्त्रीय नाटकों की महत्व को समझते हुए इन्हें मंच देने की कवायद शुरू की है। संगीत विभाग में 25 से अधिक युवा भास के नाटक प्रतिज्ञायौगन्धरायण की प्रैक्टिस कर रहे हैं। इसमें संगीत विभाग के साथ अन्य विभागों और कुछ बाहरी विद्यार्थी भी शामिल है। रंगकर्मी आचार्य भारतरत्न […]
जयपुर . राजस्थान विश्वविद्यालय ने वैदिक कालीन शास्त्रीय नाटकों की महत्व को समझते हुए इन्हें मंच देने की कवायद शुरू की है। संगीत विभाग में 25 से अधिक युवा भास के नाटक प्रतिज्ञायौगन्धरायण की प्रैक्टिस कर रहे हैं। इसमें संगीत विभाग के साथ अन्य विभागों और कुछ बाहरी विद्यार्थी भी शामिल है। रंगकर्मी आचार्य भारतरत्न भार्गव विद्यार्थियों को शास्त्रीय नाट्य की प्रैक्टिस करा रहे। कुलपति अल्पना कटेजा ने भार्गव को विश्वविद्यालय में आवास भी उपलब्ध कराया है, जहां वे नाटक की तैयारी करवा रहे हैं। वहीं संगीत विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. वंदना कल्ला सहयोग कर रही है। प्रस्तुत है आचार्य भारतरत्न भार्गव से बातचीत के अंश….
प्राचीन परंपरा को पुन: प्रतिष्ठित करने का प्रयास
देश में हिन्दी नाटक तो हो रहे है, जो विदेशी विचारधारा व यथार्थवाद से प्रेरित है, ये भारतीय नाट्य अवधारणा के अनुकूल नहीं है। संस्कृत में शास्त्रीय नाट्य हमारी प्राचीन परंपरा है, उसे पुन: प्रतिष्ठित करने के लिए यह प्रयास किया जा रहा है। यह प्रोजेक्ट तीन माह का है, जो मई में शुरू हुआ, जुलाई तक यह चलेगा। भास का यह पहला संस्कृत नाटक अगस्त में होगा। इसे लेकर 40 युवाओं के आवेदन आए है, उसमें से हमने 25 युवाओं का चयन किया है।
- प्रो. वंदना कल्ला, विभागाध्यक्ष, संगीत विभाग