जल सहेलियों ने छात्रों को पानी के लिए किया जागरूक।
अस्तित्व खोते बुंदेलखंड के चंदेल कालीन तालाब, पुनर्जीवन की जरूरत
टीकमगढ़. जिले में चंदेलकालीन तालाब, बावड़ी और पानी के अन्य स्रोतों को जिम्मेदार भूल गए है। जबकि वह जल स्रोत आज भी सफल है। उनका संरक्षा और पुनर्जीवन के लिए जल यात्रा जल सहेलियों द्वारा निकाली जा रही है। यह जल यात्रा पूरे बुंदेलखंड में निकाली जा रही है। दसवें दिन पपौरा जी पहुंची और स्कूली छात्र-छात्राओं को पानी को सहजने जागरूक किया।
जल सहेलियों द्वारा जल संरक्षण के लिए निकाला गया यह पैदल मार्च एक ऐतिहासिक और प्रेरणादायक कदम है। जो गांधी के आंदोलनों की याद दिलाता है। जिस तरह महात्मा गांधी ने देश की आज़ादी के लिए अपनी यात्रा शुरू की थी, ठीक उसी तरह जल सहेलियों ने बुंदेलखंड में पानी की किल्लत से निपटने के लिए अपना कदम बढ़ाया है। यह मार्च न केवल जल बचाने की जागरूकता फैला रहा है, बल्कि यह एक महिला नेतृत्व वाले सामाजिक आंदोलन का प्रतीक बन गया है। मंगलवार के दसवें दिन टीकमगढ़ के बड़ा तालाब से होते हुए पपौरा जी, माडूमर, पठा, बटपुरा, जरउआ और गुदनवारा पहुंची।
शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय पठा में जल सहेलियों द्वारा जल चौपाल का आयोजन किया गया। जिसमें छात्र-छात्राओं को जल सहेलियों द्वारा जल संरक्षण के उपायों के बारे में जानकारी दी गई। चंदेल काल में बनाए गए ये तालाब जल संचयन और कृषि के लिए महत्वपूर्ण थे, लेकिन समय के साथ इनकी हालत खराब हो गई है।
प्राकृतिक और मानवीय कारणों से इन तालाबों में गंदगी, बर्बादी और जलभराव की कमी हो गई है। जल सहेली पुष्पा ने कहा कि हम सभी जल सहेलियां बुंदेलखंड को पानीदार बनाने और समाज को जल के प्रति संवेदनशील करने के उद्देश्य से 2 फ रवरी से 19 फ रवरी तक जटाशंकर धाम तक यात्रा कर रहे है।