Dementia detection: विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब आंखों के टेस्ट से शुरुआत में ही डिमेंशिया के बारे में पता चल जाएगा और भविष्य में दिमाग के महंगे परीक्षण की जरूरत नहीं पड़ेगी।
Dementia detection: स्कॉटलैंड के वैज्ञानिक शोध के आधार पर एआइ डिवाइस बना रहे हैं। आने वाले समय में डिमेंशिया (मनोभ्रंश) का पता लगाने के लिए दिमाग के महंगे परीक्षण (test) की जरूरत नहीं पड़ेगी। आंखों (Eyes) के टेस्ट से ही पता चल जाएगा कि किसी व्यक्ति के दिमाग की सेहत कैसी है। स्कॉटलैंड के वैज्ञानिकों के ताजा शोध के मुताबिक आंखों का टेस्ट डिमेंशिया (dementia) जैसी गंभीर दिमागी बीमारियों का शुरुआती चरण में पता लगाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक आंखों की जांच के जरिए डिमेंशिया के शुरुआती संकेत पहचानने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (artificial intelligence) की मदद ली जा सकती है। यह तकनीक आंख के रेटिना (retina) में दिखने वाली ब्लड वेसेल्स और नर्वस सिस्टम का पैटर्न समझने में मददगार होगी।
डिमेंशिया की पहचान और रोकथाम की नई तकनीक गेमचेंजर साबित हो सकती है। ‘न्यूरआइ’ नाम की रिसर्च टीम ने स्कॉटलैंड में आंखों के डॉक्टर्स से एक करोड़ आंखों की जांच रिपोर्ट इक_ी की। यह दुनिया का सबसे बड़ा डेटा सेट है। डेटा का इस्तेमाल कर अब शोधकर्ता रेटिना में होने वाले छोटे-छोटे बदलावों का एआइ तकनीक के जरिए पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
शोध गाइड करने वाले प्रोफेसर बलजीत ढिल्लों का कहना है कि आंखें दिमाग की सेहत के बारे में बहुत कुछ बता सकती हैं। इस शोध के आधार पर ऐसा डिवाइस विकसित करने पर काम चल रहा है, ताकि आंखों के डॉक्टर नियमित जांच में शामिल कर सकें। इससे डिमेंशिया के बारे में समय पर पता लगाना आसान होगा। शुरुआती चरण में डेमेंशिया का पता चलने पर बीमारी को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है।
दुनियाभर में डिमेंशिया के मामले बढ़ रहे हैं। भारत में 60 साल से ऊपर के करीब 88 लाख लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। अमेरिकन ऑप्टोमेट्रिक एसोसिएशन का सुझाव है कि 18 से 64 साल की उम्र के वयस्कों को हर दो साल में आंखों की जांच करानी चाहिए, जबकि 65 साल से ज्यादा उम्र वालों के लिए हर साल जांच जरूरी है।
डिमेंशिया एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है, जिसमें व्यक्ति की सोचने, याद रखने, और निर्णय लेने की क्षमता में कमी आ जाती है। यह एक प्रकार का मस्तिष्क रोग है, जो उम्र बढ़ने के साथ अक्सर बढ़ता है, लेकिन यह केवल उम्र का असर नहीं होता। डिमेंशिया से प्रभावित व्यक्ति को अपने रोज़मर्रा के कार्यों में कठिनाई हो सकती है, जैसे कि किसी का नाम याद न आना, दिशा-निर्देश भूल जाना, या साधारण गतिविधियों को करने में परेशानी होना। डिमेंशिया कई कारणों से हो सकता है, जैसे अल्जाइमर रोग, पार्किंसन्स रोग, या रक्तचाप के कारण मस्तिष्क में होने वाली क्षति। यह एक प्रोग्रेसिव बीमारी है, जिसका मतलब है कि समय के साथ इसके लक्षण बिगड़ते जाते हैं। इसके शुरुआती लक्षणों में स्मृति में कमी, भ्रम, और शारीरिक गतिविधियों में असमर्थता हो सकती है। डिमेंशिया का इलाज पूरी तरह से संभव नहीं है, लेकिन समय रहते इलाज और देखभाल से व्यक्ति की जीवन गुणवत्ता को बेहतर किया जा सकता है।