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राजनीतिक लेखा जोखा-2017:  कांग्रेस को केवल पंजाब में ही मिली संजीवनी

locationअमृतसरPublished: Dec 30, 2017 09:31:14 pm

पंजाब में राजनैतिक दृष्टिकोण के आधार पर अगर वर्ष 2017 का अवलोकन किया जाए तो प्रदेश की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को केवल पंजाब से ही संजीवनी मिल सकी है

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चंडीगढ़। पंजाब में राजनैतिक दृष्टिकोण के आधार पर अगर वर्ष 2017 का अवलोकन किया जाए तो प्रदेश की सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को केवल पंजाब से ही संजीवनी मिल सकी है। पंजाब राज्य ही ऐसा प्रदेश है जहां से कांग्रेस को जीत नसीब हुई है। इसके अलावा हिमाचल व गुजरात आदि राज्यों में हुए चुनावों के दौरान कांग्रेस पार्टी को मुंह की खानी पड़ी है।


रविवार को समाप्त हो रहे वर्ष की शुरूआत अकाली-भाजपा गठबंधन के लिए अच्छी नहीं रही। गठबंधन पिछले दस वर्ष से लगातार पंजाब की सत्ता पर काबिज था लेकिन इस वर्ष फरवरी माह के दौरान हुए चुनाव में दस साल तक सत्ता से बाहर रही कांग्रेस पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई। कांग्रेस पार्टी के दृष्टिकोण से देखा जाए तो सत्ता में आने के बावजूद यह साल विवादों से कम नहीं रहा।


पूरा साल कांग्रेस के विधायक मंत्रीमंडल विस्तार की आस लगाए मुख्यमंत्री की तरफ देखते रहे। यही नहीं कांग्रेस पार्टी के ही कई विधायक जहां अंदरखाते मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के विरूद्ध लॉबिंग करते रहे। इसके बावजूद मंत्रीमंडल का विस्तार नहीं हो सका। जिसके चलते कई विधायक ने सरकार द्वारा शुरू की गई नशा विरोधी मुहिम पर सवाल खड़े किए।


पंजाब विधानसभा में विपक्षी दल की भूमिका निभाने वाली आम आदमी पार्टी की अगर बात की जाए तो विपक्ष में बैठने के बावजूद पार्टी के ग्राफ में लगातार गिरावट आती रही है। आम आदमी पार्टी पंजाब में पहली ऐसी पार्टी है जिसे पहले ही साल में विधानसभा में अपना नेता बदलना पड़ गया। पार्टी पूरा साल जहां गुटबाजी में उलझी रही वहीं विधानसभा में आप विधायक दल के नेता एच.एस. फुल्का ने इस्तीफा दे दिया और पार्टी ने कमान सुखपाल सिंह खैहरा को सौंप दी।


फुल्का के मुकाबले खैहरा का विधानसभा में प्रदर्शन तो बेहतर रहा लेकिन वह भी जल्द ही विवादों में घिर गए। खैहरा के नेतृत्व में पार्टी ने गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव तथा निकाय चुनाव लड़े लेकिन सफलता नहीं मिली। निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी पूरी तरह से हाशिए पर पहुंच गई। उधर दस वर्ष तक पंजाब में सत्ता संभालने वाले अकाली-भाजपा गठबंधन के लिए भी यह साल ज्यादा अच्छा नहीं रहा।


पूरे वर्ष के दौरान कई बार ऐसे मुद्दे पर आए अकाली-भाजपा गठबंधन विधानसभा के भीतर और बाहर अलग-अलग राह पर दिखाई दिए। अकाली दल ने अपना पूरा साल पंथक राजनीति को आगे बढ़ाने में लगाया। अकाली दल ने पिछले दस वर्ष के मुकाबले इस वर्ष सबसे ज्यादा धार्मिक मुद्दे उठाए। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी अपने राष्ट्रीय नेतृत्व के दिशा-निर्देश पर ही राजनीति को आगे बढ़ाती रही। इस वर्ष के दौरान भाजपा को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब कांग्रेस ने गुरदासपुर लोकसभा की पारंपरिक सीट भाजपा से छीनकर अपना कब्जा जमा लिया।

घोटाले उजागर करने में जुटे रहे सिद्धू
पंजाब सरकार में इस वर्ष सबसे चर्चित चेहरे के रूप में स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू रहे। सिद्धू ने पूरे वर्ष के दौरान कभी केबल घोटाला तो कभी अपने विभाग में पूर्व सरकार के दौरान हुए घोटालों को उजागर किया लेकिन मुख्यमंत्री का समर्थन नहीं मिलने के कारण सिद्धू द्वारा उजागर किए गए घोटालों के सार्वजनिक परिणाम सामने नहीं आ सके।

विधानसभा में उतरी विधायकों की पगडिय़ां
इस वर्ष पंजाब विधानसभा के इतिहास में सबसे बड़ी दागदार घटना हुई। विधानसभासत्र के दौरान हंगामा इतना बढ़ा की आम आदमी पार्टी, अकाली दल विधायकों की जहां मार्शलों के साथ मारपीट हुई वहीं विधानसभा के भीतर आप विधायकों की पगडिय़ां तक उतर गई। आप की महिला विधायकों के साथ कथित मारपीट तक भी हो गई।

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