अंग्रेज सरकार रॉलेट एक्ट लागू कर भारतीयों से अपील, दलील और वकील का अधिकार छीन चुकी थी। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता और महात्मा गांधी भी इन दमनकारी नीतियों से आहत थे। तब महात्मा गांधी व पंडित मोतीलाल नेहरू ने अधिवेशन में अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन चलाने का निर्णय किया और असहयोग आंदोलन का अंकुर भी इसी अधिवेशन में फूटा।
चुनाव सीजन में फिर शुरू हुआ नया विवाद
जलियांवाला बाग नरसंहार से आहत थे बापू
कांग्रेस नेताओं ने देश की जनता से आह्वान किया कि वे पूरे देश में असहयोग आंदोलन चलाएं। देश के हर नागरिक ने सत्याग्रह व असहयोग आंदोलन में भाग लिया। इतिहासकार रामचंद्र गुहा की पुस्तक में यह दावा किया गया है कि जलियांवाला बाग नरसंहार ने गांधी जी को झकझोर दिया। उनके कहने के बाद भी जब आरोपित अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो वे अंग्रेजों के कट्टर विरोधी बन गए। गुहा की किताब ‘शहादत से स्वतंत्रता’ में दावा किया गया है कि बापू ने 1919 से पहले कभी पंजाब का दौरा नहीं किया। 13 अप्रैल 1919 को डायर ने बैसाखी के मौके पर जलियांवाला बाग में आए निहत्थे लोगों पर गोली चलवा दी। नरसंहार से बापू बेहद आहत थे।
अमृतसर, पटियाला स्टेशन उड़ाने की दी धमकी
इसलिए बापू ने चलाया आंदोलन
गुहा की किताब ‘शहादत से स्वतंत्रता’ में दावा किया गया है कि उन्होंने ब्रिटिश वायसरॉय से कहा कि जनरल डायर और तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओड्वायर को नरसंहार के लिए दोषी मानकर तुरंत बर्खास्त किया जाए, लेकिन वायसरॉय ने जनरल डायर के एक्शन पर खेद जताया और ओड्वायर को सर्टिफिकेट ऑफ केरेक्टर दे दिया। इसमें उनकी मुक्तकंठ से सराहना की गई। तब गांधीजी ने आंदोलन चलाने का फैसला किया।