अटारी बॉर्डर के पास जगह-जगह खड़े खराब ट्रक गवाही दे रहे हैं कि 2004 में पाकिस्तान और भारत में कारोबार कैसे परवान चढ़ रहा था। यहां से 2000 करोड़ का सालाना कारोबार होता था। अमृतसर के अटारी के अलावा तरनतारन, फिरोजपुर और गुरदासपुर के 25 हजार परिवारों के 75 हजार लोगों की रोजी-रोटी इसी से चलती थी। ट्रेड बंद होने का सबसे ज्यादा असर ट्रांसपोर्टर्स और व्यापारियों पर पड़ा है। 60 प्रतिशत ट्रक बिक चुके हैं। लेबर भी प्रभावित हुई है। यहां 2000 से ज्यादा ट्रकों से माल ढोया जा रहा था। पुलवामा हमले के बाद भारत ने 17 फरवरी 2019 को पाक से इंपोर्ट होने वाले सामान पर 200 प्रतिशत ड्यूटी लगा दी। इसकेे बाद पाक ने एकतरफा फैसला लेते हुए ट्रेड बंद कर दिया। करीब 3300 कुली ट्रेड से जुड़े थे मगर अब परिवार का पेट पालना भी दूभर हो रहा है। 15 से अधिक ढाबे खंडहर बन चुके हैं।
सरकार ने पल्ला झाड़ा
वहा़ काम करने वाले अधिकतर कुली डिप्रेशन का शिकार हो गए। आर्थिक तंगी से बच्चों का स्कूल बंद हो गया। तीज त्योहारों पर भी अपनों ने आना जाना छोड़ दिया। घर मकान कोई खरीदने को तैयार नहीं जो दूसरे शहर में ही जाकर रह सकें। ऐसे में सरकार ने भी पल्ला झाड़ लिया। तमाम अर्जियों के बाद भी राशन की व्यवस्था नहीं हुई। करीब एक साल से घर की दीवारें देखते देखते आंखें पथरा गईं… अब तो ऊपर वाला ही कुछ करेगा तो दिन बदलेंगे।
पीड़ितों की आपबीती सुनेंगे तो…
खाली ढाबे में बैठे बलजीत ने बताया कि पहले इसी ढाबे का किराया 20 हजार था। अब 5 हजार में भी कोई लेने को तैयार नहीं है। बलजीत कुछ बताते कि तभी वहां सैलानियों के फेस पर पेंट से तिरंगा बनाने वाले रोनक भाई पहुंच गए। वे बताते हैं कि मैं आईसीपी में रजिस्टर्ड कुली हूं मगर परिवार का पेट पालने को कुछ भी करने को तैयार हूं। ड्राईफ्रूट्स इंपोर्ट करने वाली एसोसिएशन के प्रधान अमृतसर के अनिल मेहरा ने बताया कि आईसीपी के जरिए दोनों मुल्कों में सालाना 2000 करोड़ का व्यापार होता था। 1200 से 1400 करोड़ का इंपोर्ट ही था।
पाकिस्तान से आता था यह सामान…
पाक से आने वाले सामान में सीमेंट, जिप्सम, नमक, छुआरा, लैदर, रबड़ प्रमुख थे। आईसीपी में पाक से सीमेंट की रोज 50, छुआरे की 20 व नमक की 10 से 12 गाडिय़ां आती थीं। यहां से हरी सब्जियां, सोयाबीन, प्लास्टिक दाना, टमाटर व मेडिकल सामान जाता था। प्याज भी आता-जाता था। अगर पाक में प्याज की कमी होती तो यहां से भेजा जाता और यहां कमी होती तो वहां से मंगाया जाता था… मगर क्या करें वक्त के फेर में सब ढेर हो गया।