scriptजब खलीफा समझ जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश से रोक दिया गुरु नानकदेव को | When Guru Nanak Dev was stopped from entering the Jagannath temple | Patrika News

जब खलीफा समझ जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश से रोक दिया गुरु नानकदेव को

locationअमृतसरPublished: Nov 12, 2019 06:06:51 pm

Submitted by:

Yogendra Yogi

गुरूनानक देव जगन्नाथ मंदिर पहुंचे तो द्वारपालों ने ‘खलीफा’ समझ कर मंदिर में प्रवेश देने से इंकार कर दिया। इस पर महाप्रभु जगन्नाथ जी ने राजा को सपने में सारा किस्सा बताया, तब राजा सम्मान गुरूनानक और उनकी मंडली को लेकर वापस आए।
 
 

जब खलीफा समझ जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश से रोक दिया गुरु नानकदेव को

जब खलीफा समझ जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश से रोक दिया गुरु नानकदेव को

भुवनेश्वर(महेश शर्मा): दुनिया के भ्रमण के दौरान जब गुरूनानक देव पैदल यात्रा करते हुए पुरी के जगन्नाथ मंदिर पहुंचे तो उनकी बढ़ी हुई दाढ़ी और वेशभूषा देखकर द्वारपालों ने ‘खलीफा’ समझ कर मंदिर में प्रवेश देने से इंकार कर दिया। इस पर महाप्रभु जगन्नाथ जी ने राजा को सपने में सारा किस्सा बताया, तब पुरी के राजा सम्मान गुरूनानक और उनकी मंडली को लेकर वापस आए।
पुरातत्व ताड़ पत्तों पर दर्ज है यह किस्सा
जगन्नाथ मंदिर संग्रहालय में ताड़ के पत्तों पर लिखी एक पाण्डुलिपि में गुरूनानक का एक ऐतिहासिक किस्सा दर्ज है। जब गुरु नानक अध्ययन विभाग के प्राध्यापक रघुवीर सिंह टाक ने उडिय़ा में लिखे गए इस ऐतिहासिक दस्तावेज का अध्ययन किया तो हैरत मे आ गए। इस दुर्लभ पाण्डुलिपि में चैतन्य महाप्रभु और गुरु नानक देव की पुरी यात्रा का अद्भुत संस्मरण लिखा हुआ था। श्रीजगन्नाथ मंदिर संग्रहालय, जगन्नाथ पुरी में संरक्षित इस ताड़पत्र उडिय़ा पांडुलिपि का शीर्षक है भक्त पंचक अर्थात पांच भक्त। संग्रहालय के क्युरेटर के अनुसार यह पांडुलिपि 1504 से 1534 ईस्वी के बीच सिसु मठ पुरी के जसोवंत दास द्वारा लिखी गई थी। उस समय पुरी के शासक राजा प्रतापरुद्र देव थे।
पांच संतों के प्रवास का जिक्र
इस पांडुलिपि में जिन पांच संतों के पुरी प्रवास का वर्णन है। ये हैं, चैतन्य महाप्रभु, जगन्नाथ दास, अच्युतानंद दास, नानक देव और सिसुंतदास। पांडुलिपि के प्रत्येक पृष्ठ पर कविता की पांच पंक्तियां लिखी हैं। पांडुलिपि के पृष्ठ क्रमांक 14 पर गुरु नानक देवा का वर्णन इस प्रकार है, पुरी के राजा प्रताप रुद्रदेव के शासनकाल के 13वें वर्ष में गुरु नानक देव, मरदाना और चौदह अन्य सन्यासियों के साथ भादों शुक्ल एकादशी साल 924 (उडयि़ा वर्ष) के दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने जगन्नाथ मंदिर पहुंचे।
सपने में राजा को मिला आदेश
गुरुनानक देव की पोशाक से गुरु नानक देव को एक खलीफा समझ लिया गया और उन्हें मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गयी। गुरु नानक देव जी सन्यासियों के साथ समुद्र के किनारे चले गए। और वहीं पर भजन कीर्तन, प्रवचन शुरू कर दिया। उस रात पुरी के राजा को स्वप्न में महाप्रभु जगन्नाथ ने आदेश दिया कि मंदिर में नियमित होने वाली आरती बंद कर दी जाएं क्योंकि मैं उस समय वहां नहीं होता, समुद्र के किनारे गुरु नानक के भजन सुन रहा होता हूं। आश्चर्यचकित राजा समुद्र किनारे पहुंचे और देखा कि गुरु नानक भजन गा रहे हैं और भगवान जगन्नाथ, बलराम और ***** सुभद्रा वहां पर खड़े हैं।
२4 दिन तक रूके गुरूनानक
राजा ने गुरु नानक देव से क्षमा याचना की, उन्हें कपड़े और गहने अर्पित किए तथा गाजे-बाजे के साथ शाही जुलूस में उन्हें महाप्रभु श्रीजगन्नाथ मंदिर पहुंचे। श्रीमंदिर के दर्शन के बाद गुरु नानक देव मंदिर के सामने स्थित बरगद के पेड़़ के पास बैठकर धर्मोपदेश देने लगे। उस स्थान पर आज मंगू मठ है। इसके लाल झंडे पर उनकी स्मृति में सफेद हथेली का प्रतीक चिन्ह है। गुरु नानक 24 दिन पुरी में रुके। जब वो विदा हुए तब भी राजा ने उन्हें पुरी से लगभग 23 मील की दूरी पर स्थित चंडी नाला तक जाकर शाही विदाई दी।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो