script48 फीसदी मत लेकर जिस सीट से भाजपा ने दर्ज की थी जीत, गठबंधन से वहां का भी बिगड़ सकता है खेल | After coalition Amroha become tough to get victory for BJP | Patrika News

48 फीसदी मत लेकर जिस सीट से भाजपा ने दर्ज की थी जीत, गठबंधन से वहां का भी बिगड़ सकता है खेल

locationअमरोहाPublished: Apr 17, 2019 07:08:56 pm

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Iftekhar

यूपी के अमरोहा सीट पर सपा-बसपा और आरएलडी के गठबंधन के बाद भाजपा प्रत्याशी को लिए क्लीन स्वीप मिलना मुश्किल
2014 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी कंवर सिंह तवर ने 48 प्रतीशत मत लेकर दर्ज की थी जीत
अमरोहा लोकसभा सीट से 15 प्रत्याशी हैं चुनाव मैदान में
भाजपा के कंवर सिंह तवर, बीएसपी के कुंवर दानिश अली और कांग्रेस के सचिन चौधरी के बीच है मुकाबला

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48 फीसदी मत लेकर जिस सीट से भाजपा ने दर्ज की थी जीत, गठबंधन से वहां का भी बिगड़ सकता है खेल

अमरोहा. दूसरे चरण के मतदान में उत्तर प्रदेश के अमरोहा लोकसभा सीट पर भी मतदान होगा। इस बार यहां का चुनाव कई मामलों में खास है। ऐतिहासिक तौर पर यूं तो इस सीट पर कभी किसी एक दल का दबदबा नहीं रहा। इस सीट की जमता ने लगभग सभी दलों के नेताओं को जिताकर संसद तक पहुंचाने का काम किया है। 1957 में यह लोकसभा सीट वजूद में आने के बाद से अब तक यहां सबसे ज्यादा कांग्रेस और भाजपा को तीन-तीन पर जीत का स्वाद चखने को मिला। लेकिन पिछले चुनाव के आंकड़े पर नजर डाले तो गठबंधन के बाद भी भाजपा के वर्तमान सांसद और प्रत्याशी कंवर सिंह तंवर एक मजबूत दावेदार नजर आते हैं। हालांकि, गठबंधन की वजह से उन्हें इस बार कड़ी टक्कर मिलने के आसार हैं।

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पिछले चुनाव का आंकड़ों से समझे आने वाले नतीजे को

यूं तो यह सीट मुस्लिम बाहुल्य है। लेकिन, यहां जाट समाज भी बड़ी तादाद में हैं। चुनाव परिणाम का रुख बदलने में उनकी भी खास भूमिका रहती है। इस बार अमरोहा लोकसभा सीट से वैसे तो चुनावी मैदान में 15 कैंडिडेट हैं, लेकिन भाजपा के मौजूदा सांसद कंवर सिंह तंवर, बीएसपी के कुंवर दानिश अली और कांग्रेस के युवा चेहरे सचिन चौधरी पर खासा नजर है। गठबंधन होने से जहां दानिश अली कड़ी टक्कर दे रहे हैं। दरअसल, वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में अमरोहा सीट से भाजपा के उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर विजयी रहे थे। तब सपा और बसपा दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में मोदी लहर के बीच कंवर सिंह तंवर को 48.3 फीसदी वोट मिले थे। इसके अलावा एसपी उम्मीदवार हुमैरा अख्तर को 33.8 फीसदी वोटों से संतोष करना पड़ा था। वहीं, बहुजन समाज पार्टी की उम्मीदवार फरहत हसन को 14.9 फीसदी मतदाताओं का साथ मिला था। ऐसे में इन आंकड़ों पर नजर डाले तो इस बार सपा और बसपा के वोट जुड़ने से कड़ी टक्कर मिलने के आसार हैं। इसके अलावा कांग्रेस की ओर से सचिन चौधरी को चुनाव मैदान में उतारने से भाजपा के जाट वोट कटने के संकेत भी है। इसके अलावा इस बार वैसी मोदी लहर नहीं है, जेसा कि 2014 में देखने को मिला था। ऐसे में अगर सपा और बसपा के वोट दानिश अली के खाते में जाते हैं तो वे इस बार बाजी मार सकते हैं। लेकिन भाजपा के पुराने आंकड़े बताते हैं की जीत आसान नहीं होगी। अगर हुई भी तो बहुत कम अंतरों से ही होगी।

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