किन चेहरों पर भाजपा और कांग्रेस लगाएगी जीत की बाजी, दोवदारी से पहले उठा पटक जारी
अनूपपुरPublished: Mar 11, 2019 09:14:21 pm
अनूपपुर से ही सांसद प्रत्याशी की पुरजोर में जुटी कांग्रेस, नए की कमी में पुराने पर दाव लगाने की तैयारी
अनूपपुर। देश में आगामी 7 चरणों में होने वाली लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही शहडोल ससंदीय क्षेत्र से भाजपा और कांग्रेस राजनीतिक पार्टियोंं में प्रत्याशियों के चेहरे पर बैचेनी बढ़ है। पिछले तीन दशको से दो परिवारों के बीच संसदीय पद की दोवदारी होने के कारण अबतक तीसरा प्रत्याशी सामने खड़ा नहीं हो सका है। जबकि पुराने दिग्गज चेहरों पर युवाओं का जोश खामोश है। इसे लेकर दोनों राजनीतिक हलकों में प्रत्याशी चयन के लिए उफापोह की स्थिति बनी हुई है। वर्ष २०१६ में शहडोल भाजपा सांसद दलपत सिंह के असामायिक निधन के उपरांत हुए उपचुनाव में ज्ञान सिंह ने भाजपा की शाख बचाई थी। लेकिन अंत समय जातिप्रमाण पत्र के मामले में वह भी अयोग्य घोषित साबित करार दिए गए हैं। हालात अब यह बन गए हैं कि पुराने चेहरों के अलावा दोनों ही पार्टियों में कोई नया चेहरा नहीं जिसपर पार्टी अपना दाव आजमा सके। इसके आलावा सर्वाधिक समय तक शहडोल संसदीय सीट के लिए अनूपपुर जिले से प्रत्याशी की बनी दावेदारी इस बार भी शहडोल संसदीय क्षेत्र के लिए अनूपपुर से ही प्रत्याशी तय होने के कयास लगाए जा रहे हैं। जबकि भाजपा और कांग्रेस राजनीतिक दलों द्वारा नए चेहरे की घोषणा नहीं की गई है और ना ही जमीनी स्तर पर तैयार किए हैं। बावजूद दोनों ही पार्टियों के राजनीतिज्ञ अनूपपुर से संसदीय क्षेत्र के लिए प्रत्याशी की तैयारी में पुरजोर रूप से जुट गए हैं। वजह शहडोल संसदीय क्षेत्र के अनूपपुर जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस विधायक होना माना जा रहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि अनूपपुर विधायक बिसाहूलाल सिंह की अगुवाई में अनूपपुर से उनके पुत्र तेजभान सिंह या पुष्पराजगढ़ से पूर्व कांग्रेसी सांसद की पुत्री हिमाद्री सिंह पर कांग्रेस अपना पासा फेंकेगी। राजनीति जानकारों का मानना है कि शहडोल जिले से कांग्रेस की प्रमिला सिंह प्रत्याशी के रूप दावेदारी सामने आ रही है। वहीं भाजपा से जयसिंह मरावी के नाम सामने आ रहे हैं। लेकिन इन दोनों नामों पर खुद पार्टियों के अंदर असमंजस्यता की स्थिति बनी हुई है। हालांकि हाल के दिनों में पुष्पराजगढ़ विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी नरेन्द्र मरावी के प्रत्याशी बनाए जाने तथा पति के समर्थन में वोटिग की अपील से कांग्रेस में हिमाद्री को लेकर असतुष्टता बनी हुई है। और कार्यकर्ताओं में विरोध नजर आ रहा है। जबकि भाजपा से जयसिंह मरावी पर पार्टी ने अपना रूख साफ नहीं किया है।
राजनीतिक समीकरणों पर गौर करें तो 1952 से लेकर 2016 तक शहडोल में सीधी टक्कर ही देखने को मिली है। हालांकि शुरुआती समय में यहां सोशलिस्ट विचारधारा का राज था और 1962 तक यहां सोशलिस्ट विचारधारा की पकड़ मजबूत रही। जिसके कारण सात में से पांच विधानसभा सीटें सोशलिस्ट के खाते में रहीं। लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे यहां कांग्रेस ने खुद को मजबूत किया। कुछ समय बाद जनता पार्टी और जनता दल ने टक्कर देना शुरू कर दिया।1996 में बीजेपी ने कांग्रेस के अभेद किले में फतह की थी। इसके पहले बीजेपी यहां सिर्फ मुकाबला करती रही। बीजेपी ने 2009 के आम चुनावों में अपना उम्मीदवार बदल दिया और इसका फायदा कांग्रेस को मिला। यहां से कांग्रेस की राजेश नंदिनी सिंह ने बीजेपी उम्मीदवार को हरा दिया और एक बार फिर सीट कांग्रेस के कब्जे में चली गई। इससे पूर्व 1971 के चुनाव में रीवा महराजा का समर्थन पाए निर्दलीय उम्मीदवार धनशाह प्रधान ने चुनाव में मैदान मार लिया था। यह जीत राजनीतिक दलों के लिए यह बड़ा झटका था।