डायलिसिस में ब्लड बैंक, सिकलसेल और एनीमिक मरीजों के लिए खून का संकट
अनूपपुरPublished: Jun 07, 2019 12:26:02 pm
जिले में 500 से अधिक सिकलसेल प्रभावित मरीज, ब्लड बैंक में मात्र 25 यूनिट रक्त भंडार
डायलिसिस में ब्लड बैंक, सिकलसेल और एनीमिक मरीजों के लिए खून का संकट
अनूपपुर। जिला अस्पताल प्रशासन की अनेदखी में सिकलसेल प्रभावित मरीजों की परेशानियां बढ़ गई है। अस्पताल के ब्लड बैंक में मौजूद २५ यूनिट अल्प भंडारण में ऐसे मरीजों को ग्रूप अनुसार रक्त की उपलब्धता नहीं हो पा रहा है। जिसके कारण दूर-दराज गांव से आए मरीजों के परिजन रक्त के लिए भटक रहे हैं। परिजनों का कहना है कि जब अस्पताल से खून नहीं मिलेगा तो हम खून कहां से लाएं। आदिवासी बाहुल्य अनूपपुर जिले में सिकलसेल के लगभग पांच सैकड़ा मरीजों की पहचान सर्वेक्षण में सामने आया है। हाल के दिनों में जिले के ५४० गांवों में किए गए सर्वेक्षण में अबतक लगभग ४७८ मरीज चिह्नित किए गए हैं। जबकि सम्भावना है कि जिले में इनकी तादाद और अधिक हो सकती है। सिकलसेल से प्रभावित मरीजों को लगभग छह माह में एक बार खून की आवश्यकता होती, लेकिन सर्वेक्षण में चयनित हुए कुछ मरीज ऐसे हैं कि उन्हें तीन माह में एक बार ब्लड की आवश्यकता पड़ती है। बावजूद जिला अस्पताल प्रबंधन सहित जिला प्रशासन ऐसे मरीजो के लिए खून उपलब्धत के प्रति गम्भीर नहीं दिख रहा है। जिला अस्पताल में सिकलसेल एवं अन्य दुर्घटनाओं में गम्भीर रूप से घायल होकर आने वाले मरीजों के लिए अस्पताल के ब्लड बैंक खाली नजर आ रहे हैं। अस्पताल के एकमात्र ब्लड बैंक में वर्तमान में २५ यूनिट रक्त का भंडार है, जिसमें अधिकांश ग्रूप ऐसे है जिनके मरीज नामात्र हैं। प्रशासकीय लापरवाही में रक्त की कमी के दंश में सिकलसेल और एनीमिक बच्चों के माथे खतरे का साया मंडरा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे मरीज को तत्काल रक्त की आवश्यकता होती है। रक्त की कमी के कारण उन्हें शहडोल या बिलासपुर रेफर किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि पूर्व में सिकलसेल और थैलीसिमिया पीडि़त मरीजों के लिए पहचान पत्र कार्ड उपलब्ध कराने की कार्ययोजना बनाते हुए लगभग १०० मरीजों को कार्ड वितरित किया गया था। इससे यह लाभ था कि थैलीसिमिया और सिकलसेल के मरीजों को उनकी जरूरतों के अनुसार रक्त उपलब्ध कराया जाता। मेडिकल ऑफिसर डॉ. एसआरपी द्विवेदी के अनुसार पहचान पत्र के अभाव में थैलीसिमिया और सिकलसेल के मरीजों के रक्त जांच और डोनर से रक्त उपलब्धता में सप्ताहभर का समय बीत जाता है। ऐसे मरीजों को प्रत्येक छह माह में एक बार रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है। समय पर रक्त उपलब्धता नहीं होने पर मरीजों की जान भी जा सकती है। इसका मुख्य कारण मरीजों में रक्त सेल डब्ल्यूबीसी आरबीसी में परिवर्तित नहीं हो पाता है। जिसे बाहरी रक्त से शरीर में रक्त की कमी को पूरा किया जाता है। ऐसे मरीजों की संख्या अनूपपुर में सर्वाधिक है। लेकिन इसकी जानकारी परिजनों को नहंी होने के कारण मरीजों की पहचान थैलीसिमिया और सिकलसेन के रूप में नहीं हो पाता।
बॉक्स: कैसे होगी खून की पूर्ति
विदित हो कि जिला अस्पताल में ब्लड बैंक की व्यवस्था के कारण जिले के अन्य सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर सिकलसेल जैसे मरीजों को रक्त उपलब्धता के साधन नहीं हैं। जबकि जिला अस्पताल में मात्र २५ यूनिट खून शेष हैं। उपलब्ध ब्लड ग्रूपों में ए पॉजिटिव १ यूनिट, बी पॉजिटिव १६ यूनिट, ए निगेटिव ४ यूनिट, बी निगेटिव १ यूनिट, ओ पोजिटिव ३ यूनिट, एबी पॉजिटिव ० यूनिट, एबी निगेटिव ० यूनिट ओ निगेटिव ० है। जबकि ब्लड बैंक में १००-३०० यूनिट ब्लड रखना अनिवार्य है।
वर्सन:
अबतक चार शिविर लगाए गए हैं, लेकिन रक्तदाताओं की संख्या अधिक नहीं रही। ब्लड बैंक में खून की कमी है। मरीजों के परिजनों से रक्तदान की अपील कर मरीजों को खून उपलब्ध कराया जा रहा है। रक्तदान शिविर की योजना बनाई जा रही है।
डॉ. एसआर परस्ते, सिविल सर्जन अनूपपुर।