अनूपपुर के जिला अस्पताल में संचालित शिशु गहन चिकित्सा इकाई में औसतन हर दूसरे दिन एक बच्चे की मौत हो रही है। यहां भर्ती होने वाले नवजात और मौत का अनुपात 94:15 है। प्रतिमाह 90 से 95 बच्चे भर्ती होते हैं। इनमें से 15 की मौत हो रही है। अप्रेल से नवंबर तक कुल आठ महीने में शिशु गहन चिकित्सा इकाई में 754 बच्चों को भर्ती किया गया। इनमें से 120 की मौत हो चुकी है। इनमें अधिकतर बच्चे आदिवासी समाज से हैं। ये स्थिति तब है, जब क्षेत्र में स्वास्थ्य विभाग की ओर से पर्याप्त आशा कार्यकर्ताओं और एएनएम कर्मियों की तैनाती का दावा किया जाता है। जिले में 194 नियमित और 84 संविदा एएनएम और 899 आशा कार्यकर्ताओं की तैनाती है।
जानकारों के मुताबिक इनकी मैदान में सक्रियता नहीं हैं और इसकी मॉनीटरिंग नहीं की जाती। नतीजतन जन्म से पहले और बाद में बच्चों के स्वास्थ्य की देखरेख नहीं की जाती। गंभीर स्थिति में बच्चों को अस्पताल लाया जाता है। निमोनिया, दस्त और पीलिया जैसी बीमारियां मासूमों की जिंदगी छीन रही हैं।
तीन डॉक्टर पदस्थ, फिर भी दम तोड़ रहे बच्चे
जिला अस्पताल में जन्म से लेकर किशोरावस्था तक बच्चों की गंभीर समस्याओं से निपटने के लिए तीन श्रेणियों में वार्ड बनाए गए हैं। नवजातों के लिए एसएनसीयू, शून्य से पांच वर्ष तक के बच्चों के लिए पीआइसीयू और छह से 14 साल तक के बच्चों के लिए पेडियाट्रिक वार्ड है। एसएनसीयू में 20 बिस्तर, पीआइसीयू में आठ और पेडियाट्रिक वार्ड में दस बिस्तर हैं। एसएनसीयू में कोई भी विशेषज्ञ नहीं है। इलाज के लिए डॉक्टरों के चार पद में से एक खाली है। एसएनसीयू सहित पेडियाट्रिक वार्ड में स्टाफ नर्स की कमी है।
दावा: बच्चों के इलाज में नहीं बरती जा रही लापरवाही
अनूपपुर के सीएमएचओ डॉ. बीडी सोनवानी मामले पर चर्चा करते हुए बताते हैं कि चिकित्सकों की कमी है। इससे समस्या बनी हुई है। शासन को पत्र लिखकर चिकित्सकों और स्टाफ के पद भरने की मांग की गई है। बच्चों के इलाज में किसी तरह की लापरवाही नहीं बरती जा रही है।
महज 61 दिन में 28 बच्चों की जान गई
वही दूसरे जिले मंडला के जिला अस्पताल भवन के एसएनसीयू में भर्ती हो रहे नवजात बच्चों की मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। लगातार कम हो रहे स्टाफ और संसाधनों के अभाव के बीच अव्यवस्थाएं भी बढ़ती जा रही हैं। जिला अस्पताल प्रबंधन की जानकारी के अनुसार, एसएनसीयू में नवंबर 2020 में नवजात बच्चों की मौत का आंकड़ा 16 रहा, जबकि अक्टूबर में यह 12 था। अक्टूबर में 128 और नवंबर में 106 बच्चों को यहां भर्ती कराया गया था। एसएनसीयू प्रभारी डॉ एस रोटेला का कहना है कि जन्मजात विकार नवजात बच्चों के जीवन पर हावी हो रहे हैं। अधिकतर बच्चे या तो बेहद कम वजन के होते हैं या समय से पहले जन्मे होते हैं। आंकड़े बता रहे हैं कि एसएनसीयू में 04 चिकित्सकों का होना जरूरी है लेकिन फिलहाल 01 चिकित्सक है। 19 स्टाफ नर्स होने चाहिए, लेकिन फिलहात 11 नर्सें ही हैं।