scriptकुपोषण का दंश: मैदानी अमलों को नहीं मिल रही कुपोषित बेटियां, जिले में सर्वाधिक हैं कुपोषित नन्हीं जान | Malnutrition bites: Malnutrition not found in plains, most of the dist | Patrika News

कुपोषण का दंश: मैदानी अमलों को नहीं मिल रही कुपोषित बेटियां, जिले में सर्वाधिक हैं कुपोषित नन्हीं जान

locationअनूपपुरPublished: May 08, 2019 11:59:08 am

Submitted by:

Rajan Kumar Gupta

सामाजिक कुप्रथाओं के साथ विभागीय उदासीनता का बन रही शिकार

Malnutrition bites: Malnutrition not found in plains, most of the dist

कुपोषण का दंश: मैदानी अमलों को नहीं मिल रही कुपोषित बेटियां, जिले में सर्वाधिक हैं कुपोषित नन्हीं जान

अनूपपुर। भले ही शासन ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं का नारा देकर नारी शक्ति को समाज की मुख्यधारा में आगे लाने का प्रयास किया, ताकि सामाजिक ढांचे में महिला-पुरूष की अनुपातिक स्थिति को बेहतर बनाते हुए उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सके। लेकिन आदिवासी अनूपपुर जिले में जन्म लेने वाली अधिकांश बेटियां कुपोषित हैं। जिन्हें सुपोषित करने स्वास्थ्य विभाग और महिला बाल विकास विभाग के मैदानी अमलों की नजर नहीं पहुंच रही है। जबकि जिले में ११३३ आंगनबाड़ी और मिनी आंगनबाड़ी केन्द्र संचालित हैं। बावजूद जिले में चयनित १०३९१ कुपोषित बच्चों की दर्ज संख्या में बालिकाओं की संख्या बालकों से डेढग़ुनी है। ये हालात अतिकुपोषित दर्ज ७७० बच्चों के आंकड़ों में भी सर्वाधिक हंै। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि बेटियां आज भी सामाजिक कुप्रथाओं के साथ साथ विभागीय अमलों की उदासीनता का शिकार बन रही है। बेटियों को सामाजिक व्यवस्था में आज भी हेय की दृष्टि से देखा जा रहा है। या तो परिजन आज भी बेटियों को परिवार का बोझ समझ उनके पालन पोषण में सिथिलता बरत रहे हैं या फिर विभाग स्तर पर मैदानों में कार्यरत स्वयं महिला आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा कार्यकर्ता व एएनएम सदस्य सहित प्रेरक समूह द्वारा उन्हें पोषक पुर्नवास केन्द्र में भर्ती कराने अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहीं है। फिलहाल लापरवाही कुछ भी हो, लेकिन कुपोषण के कुचक्र में मासूम बेटियोंं के जानें संशत में अटकी पड़ी है। आंकड़ों को देखा जाए तो पिछले एक साल में दर्ज १०३९१ कुपोषित बच्चों की संख्या में ५४३२ बालिकाएं हैं और ४९५९ बालक हैं। जबकि अतिकुपोषित ७७० दर्ज बच्चों के आंकड़ों में ४४० बालिकाएं और ३३० बालक हैं। इनमें पुष्पराजगढ़ में सर्वाधिक कुपोषित बालिकाएं २१८३ और २००८ बालक हैं। जबकि सबसे कम कोतमा में ८०६ बालिकाएं और ६८१ बालक कुपोषित हैं। अतिकुपोषित बच्चों में पुष्पराजगढ़ में १७७ बालिका और १४६ बालक हैं। जबकि सबसे कम में कोतमा में ६८ बालिकाएं तथा ४८ बालक हैं।
बॉक्स: क्या कहता है सर्वे रिपोर्ट
महिला बाल विकास विभाग के आंकड़ों में दर्ज कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चों की चयनित संख्या में पिछले एक साल में जो रिपोर्ट सामने आई है उनमें चौंकाने वाले तथ्य है। इनमें अधिकांश विकासखंड में बालकों की संख्या कुपोषण में अधिक नहीं है। हर ब्लॉक में बालिकाओं की संख्या सर्वाधिक दर्ज है। बावजूद प्रत्येक गांव में संचालित आंगनबाड़ी केन्द्र और वहां कार्यरत आशा कार्यकताओं व एएनएम सहित स्वंयसेवी संस्थाओं द्वारा कोई पहल नहीं की जाती।
विस. कुपोषित बालिका बालक कुल अतिकुपोषित बालिका बालक कुल
अनूपपुर ११२६ ११२९ २२५५ १२५ ८४ २०९
जैतहरी १३१७ ११४१ २४५८ ७० ५२ १२२
कोतमा ८०६ ६८१ १४८७ ६८ ४८ ११६
पुष्पराजगढ़ २१८३ २००८ ४१९१ १७७ १४६ ३२३
———————————————–
कुल ५४३२ ४९५९ १०३९१ ४४० ३३० ७७०
बॉक्स: कलेक्टर ने क्षेत्र भ्रमण के दिए निर्देश
पत्रिका की खबर पर कलेक्टर ने कुपोषण की गम्भीरता पर एसडीएम सहित महिला बाल विकास विभाग और स्वास्थ्य विभाग को क्षेत्र भ्रमण के निर्देश दिए हैं। साथ ही एसडीएम को एनआरसी की मॉनीटरिंग, महिला बाल विकास विभाग अधिकारी को जिले के भ्रमण व एनआरसी जांच पड़ताल, स्वास्थ्य विभाग द्वारा अमले के साथ ग्रामीण क्षेत्रों का सर्वेक्षण करने सहित परियोजना अधिकारियों को प्रेरित करने की जिम्मेदारी सौंपते हुए कुपोषित बच्चों को एनआरसी पहुंचाने के निर्देश दिए हैं।
—————————————————————-
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो