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पुत्र की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा हर छठ का व्रत, निर्जला व्रत रखकर पसही चावल का किया सेवन

locationअनूपपुरPublished: Sep 02, 2018 09:28:47 pm

Submitted by:

shivmangal singh

पुत्र की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा हर छठ का व्रत, निर्जला व्रत रखकर पसही चावल का किया सेवन

Mothers kept the fast for every long time, kept a stream of rice and c

पुत्र की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा हर छठ का व्रत, निर्जला व्रत रखकर पसही चावल का किया सेवन

पुत्र की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा हर छठ का व्रत
अनूपपुर। पुत्र की दीर्घायु के साथ उसकी सुख-समृद्धि की कामनाओं वाला हरषष्ठी छठ निर्जला व्रत शनिवार को श्रद्धाभाव के साथ जिलेभर में मनाया गया। भाद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाले इस व्रत को माताओं ने विधि-विधान के साथ अपने ईष्टदेव के विशेष पूजन अर्चन उपरांत शाम को पसही चावल और दही के सेवन के साथ समाप्त किया। मान्यताओं के अनुसार माताएं इसे अपने पुत्र की लम्बी आयु के साथ उसकी समृद्धिओं की प्रार्थनाओं के लिए करती है। जबकि धार्मिक ग्रंथ स्कंद पुराण में वर्णित है कि हरछठ देव धर्म स्वरूप नंदी बैल का पूजन किया जाता है। भगवान शिव के नंदी बैल को धर्म का स्वरूप माना जाता है। जिसकी पूजा कर माताएं अपने पुत्र के लिए लंबी उम्र की कामना करती हैं। मिट्टी से भगवान की मूर्ति का निर्माण कर बांस की लकडी, छुईला के पत्ते, कांस एवं महुआ के पत्ता को सजा कर विधि-विधान से पूजा अर्चना करते हुए अपने संतान की लंबी उम्र और उनकी सुख समृद्धि की ईश्वर से की। बताया जाता है कि हरछठ पूजा में पांच वृक्षों जिसे पंच वृक्ष कहा जाता है के पांच वृक्षों के तना को मिलाकर जिसे छूला डांडी, छूलजारी के नाम से भी जाना जाता है में महुआ, छूला, बेर की टहनी, कांश, बांस वृक्ष को घर के आंगन में बावली या तालाब नुमा स्थान बनाकर स्थापित किया जाता है। वही पूजन में सप्त धान जिसे सतनजा या सतदाना भी कहते हैं धान, चना, गेहूं, ज्वार, मक्का, जौ, बाजरा का प्रसाद बनाया जाता है। अन्य पूजन सामग्री के साथ-साथ घरों में कई प्रकार से प्रसाद बनाकर बांस की टोकरी मिट्टी के छोटे-छोटे कुल्हड़ में पूजन सामग्री को रख कर पूजन किया जाता है। जिसमें विशेष रूप से वरुण देव पंचव्रछ एवं सप्त धान का विशेष महत्व होता है, जिनसे यह पूजा संपन्न होती है। वहीं आज के दिन व्रत पूजा करने वाली माताएं पसही चावल जो अपने आप उगता है का चावल बना कर साथ दही का सेवन प्रसाद के रूप में करती है।ं हालांकि यह क्षेत्रीय विधाओं के आधार पर अलग अलग होते हैं। इससे पूर्व माताओं ने एक दिन पूर्व शुक्रवार को बाजार से बांस की बनी टोकनी मिट्टी के बने चुकरिया, पसही के चावल, महुआ लाई, की खरीददारी कर ली थी। जिसके कारण जिले के समस्त नगरीय बाजारों सहित ग्रामीण हाट बाजारों मे व्रत के सामानों के खरीदी की होड़ लगी रही। वहीं शनिवार की सुबह माताओं ने स्नान कर प्रसादों का निर्माण कर ईष्टदेव की पूजा अर्चना आरम्भ की।
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