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गोंडवाना के वीरों का इतिहास लिपिबद्ध करने की आवश्यकता

locationअनूपपुरPublished: Sep 20, 2019 08:18:36 pm

Submitted by:

Rajan Kumar Gupta

आईजीएनटीयू में राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को किया याद

Need to script the history of the heroes of Gondwana

गोंडवाना के वीरों का इतिहास लिपिबद्ध करने की आवश्यकता

अनूपपुर। गोंडवाना क्षेत्र के अमर बलिदानी राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर बुधवार को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय में कार्यक्रम आयोजित कर उनके त्याग और शौर्य को रेखांकित किया गया। इस अवसर पर प्रमुख वक्ताओं ने गोंडवाना के अन्य वीरों के इतिहास को लिपिबद्ध कर इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने का आह्वान किया। मुख्य अतिथि लुप्त प्राय: भाषा केंद्र के निदेशक प्रो. दिलीप सिंह ने कहा कि बलिदानी भावना का कोई मोल नहीं होता। यह देश-प्रेम के साथ जुड़ी होती है। गोंडवाना का इतिहास इस प्रकार के बलिदानियों से समृद्ध रहा है जिसमें राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह अग्रणी हैं। दोनों वीर अपनी देश-प्रेम की भावना की वजह से अभी तक लोकगीत और लोककथाओं के माध्यम से अमर बने हुए हैं। उन्होंने इस संबंध में विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह से संबंधित लोकगीतों और लोककथाओं को लिपिबद्ध कर उनके योगदान को संग्र्रहित करने का प्रयास किया गया है। उन्होंने शोधार्थियों का आह्वान किया कि वे इस प्रकार के अन्य बलिदानियों की भावना का आधार पता करने का कार्य करें। निदेशक (अकादमिक) प्रो. आलोक श्रोत्रिय ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रमों से छात्रों के अंदर वैचारिक बोधशक्ति को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने गोंडवाना के इतिहास को समझने और इसे सभी वर्गों तक पहुंचाने का आह्वान किया। प्रो. श्रोत्रिय ने नीति निर्धारकों से तकनीकी विकास, एकता-अखंडता का भाव और जन समुदाय को साथ लेकर आगे बढऩे का आह्वान किया। प्रो. किशोर गायकवाड़ ने कहा कि भारत बहु-सांस्कृतिक समाज है जो ब्रिटिश काल के पहले तक सौहार्दपूर्ण वातावरण में रहा है। अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य के प्रसार के लिए विभिन्न वर्गों के मध्य वैमनस्य को बढ़ावा दिया। राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने इसी भावना को लेकर एक व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह किया था, जिसकी वजह से वे इतिहास में सदैव के लिए अमर हो गए। कार्यक्रम के दौरान डॉ. संतोष सोनकर, डॉ. वीरेंद्र प्रताप, डॉ. चकाली ब्रह्मेया, डॉ. राजकुमार नागवंशी, डॉ. विनोद सेन, डॉ. जानकी प्रसाद, डॉ. अभिलाषा एलिस तिर्के, डॉ. कृष्णमूर्ति बीवाई सहित बड़ी संख्या में शिक्षक और छात्र उपस्थित रहे।
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