मां नर्मदा को भगवान शिव की पुत्री कहा जाता है। यहां पुरातत्व महत्व के स्थापत्य कला भी नगर की विशेषताओं में चार चांद लगाते हैं। अमरकंटक में कई प्राचीन शिव मंदिरों के बीच नर्मदा मंदिर से दक्षिण की ओर 100 मीटर की दूरी पर कलचुरीकालीन पातालेश्वर महादेव, शिव, विष्णु, जोहिला कर्ण मंदिर और पंच मठ मंदिरों का समूह है। इन मंदिरों का निर्माण 10-11 वीं शताब्दी में कलचुरी महाराजा नरेश कर्ण देव ने 1041-1073 ईस्वी में बनवाया था।
नर्मदा मंदिर पुजारी धनेश द्विवेदी बताते हैं कि पातालेश्वर महादेव मंदिर अपने नाम के अनुसार ही यहां स्थित है। यानी, मंदिर का शिवलिंग पृथ्वी की सतह से लगभग 10 फीट की गहराई में स्थापित है। मान्यता है कि पातालेश्वर शिवलिंग की जलहरी में हर साल श्रावण माह के किसी एक सोमवार को मां नर्मदा यहां भगवान शिव का अभिषेक करने पहुंचती हैं। इस दौरान शिवलिंग के ऊपर तक जल भर जाता है। यह सिर्फ सावन में होता है।
माता पार्वती के साथ यहीं रुके थे शिव
पुराणों में उल्लेख है कि भगवान शिव माता पार्वती के साथ यहीं रुके थे। नर्मदा मंदिर, सोनमूडा, माई की बगिया सहित जालेश्वर धाम के साथ नर्मदा मंदिर से सटे पातालेश्वर शिवलिंग मंदिर से भी बड़ी आस्था जुड़ी है। कहते हैं, इस मंदिर की स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी। पातालेश्वर महादेव का मंदिर विशिष्ट प्रकार से पंचरथ शैली में बना है। 16 स्तंभों में आधार वाले मंडप सहित यह मंदिर निर्मित है। मान्यता है कि इस शिव मंदिर में शिव साधना फलदायी होती है। वर्तमान में यह स्थल पुरातत्व विभाग के अधीन है।