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स्वीकृत 23 पदों में वर्षों से डॉक्टरों का पद है खाली, दवा और मवेशियों के रखने की जगह नहीं

locationअनूपपुरPublished: Dec 04, 2019 08:24:42 pm

Submitted by:

Rajan Kumar Gupta

8 चिकित्सकों के भरोसे जिले की 282 ग्राम पंचायत

The post of doctors has been vacant in the sanctioned 23 posts for yea

स्वीकृत 23 पदों में वर्षों से डॉक्टरों का पद है खाली, दवा और मवेशियों के रखने की जगह नहीं

अनूपपुर। ग्रामीण क्षेत्रों की मवेशियों में होने वाले गलघोंटू, खुरहा, बुखार, संक्रमण सहित अन्य बीमारियां मवेशियों को आसानी से अपनी मौत के मुंह में समाएं जा रही है। गंाव में मवेशी उपचार के बेहतर प्रबंधन नहीं होने के कारण अब मवेशी भी संक्रमण की मार से एक-एक कर दम तोड़ रही है। हालांकि जिला प्रशासन द्वारा सभी स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने वाली संस्थाओं से अपने ग्रामीण क्षेत्रोंं में दवाईयों के साथ कर्मचारियों की उपस्थिति बनाए रखने के निर्देश जारी किए हैं। लेकिन आलम यह है कि अब यह निर्देश सिर्फ फौरी आदेश बनकर रह गई है। पशु चिकित्सीय सुविधा के अभाव में स्थानीय किसानों के लिए मवेशियों की मौत पर सिर्फ मातम के सिवाय कुछ नहीं कर रह गया है। इसमें जहां किसानों के पशु धर को नुकसान हो रहा है, वहीं किसानों को आर्थिक नुकसान से भी जुझना पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि विभाग द्वारा जितनी स्वास्थ्य सेवा केन्द्र संचालित किए गए हैं, उनमें अधिकांश केन्द्रों पर दिनभर ताला लटका रहता था। आश्चर्य है कि जिले में लगभग ५ लाख ९३ हजार ७५७ पशुधन है। लेकिन इनकी बीमारियों से सुरक्षा के लिए मात्र ८ चिकित्सक मौजूद हैं। २८२ ग्राम पंचायतों में मवेशियों के उपचार के लिए जिले में १६ चिकित्सालय स्थापित किए गए हैं। जहां एक चिकित्सों के भरोसे दो-दो पशु चिकित्सालय संचालित हो रहे हैं। जहां स्वीकृत पदों व गांवों के अनुसार स्टाफों का अभाव बना हुआ है। जबकि अनूपपुर जिले के लिए स्वीकृत २३ पद है, जिसमें १९ पशु चिकित्सक तथा ४ वेटनरी एजक्यूटिव ऑफिसर के पद सम्मिलित है। लेकिन यहां पदस्थ पदाधिकारियों में प्रथम श्रेणी के अधिकारी के स्वीकृत ३ पद में २ भरे एक रिक्त है। वीईओ के ४ स्वीकृत पद में ३ भरे एक रिक्त है। जबकि डॉक्टरों की स्वीकृत १९ पद में ८ भरे ११ रिक्त है। इसके अलावा फील्ड ऑफिसर के स्वीकृत ८६ पदों में मात्र ४२ भरे है शेष रिक्त हैं। ग्रामीणों का कहना है कि व्यवस्थाओं व पदाधिकारियों की कमी में वर्तमान में उपकेन्द्रों मवेशियों का उपचार नहीं हो रहा है। जो फील्ड ऑफिसर हैं वे गांवों की ओर रूख तो करते हैं, लेकिन किसानों के बीमार पशुओं की सेवाएं कम दे पाते हैं। परिणामस्वरूप अधिकांश स्थानों पर पशुओं को उनके उपचार के लिए आसपास के स्वास्थ्य केन्द्रों की ओर ले जाया जाता है। लेकिन ग्रामीणों के पास बीमार मवेशियों को आसपास के स्वास्थ्य केन्द्र तक लाने-ले जाने की सुविधा नहीं होती, जिसमें मवेशी असमय मौत के शिकार हो जाते हैं।
विभागीय सूत्रों का कहना है कि जिले के ५ लाख पशुधन में ३ लाख ६० हजार गाय, ६४ हजार ७ सौ भैंस तथा ६७ हजार से अधिक बकरी/ बकरा सहित ४२ हजार से अधिक सुकर है। इतनी तादाद में मवेशियों के बाद भी विकासखंड स्तर पर उनकी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए विशेष इंतजाम नहीं है। जैतहरी, पुष्पराजगढ़, अनूपपुर और कोतमा विकासखंड में खंडस्तरीय उपकेन्द्र तो स्थापित किए गए हैं, लेकिन यहां संसाधनों का अभाव बना हुआ है। अनेक उपकेन्द्र के भवन तो स्टाफों के कारण खुल नहंी पाते और जो खुलते हैं उनके लिए समय का निर्धारण नहीं है। जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों से मवेशियों के उपचार के लिए आने वाले ग्रामीण बिना उपचार वापस लौट जाते हैं।
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