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उपज बेचने के चार माह बाद भी नहीं मिला किसानों को अनाज का पैसा!

locationअशोकनगरPublished: Sep 23, 2018 10:19:36 pm

Submitted by:

Krishna singh

समर्थन मूल्य खरीद के भुगतान की जिले में हकीकत, तीन महीने बाद भी प्रशासन को नहीं पता कि जिले के कितने किसानों का शेष है भुगतान

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अशोकनगर. अच्छी की रेट पाने के लिए किसानों ने समर्थन मूल्य खरीदी केंद्रों पर अपनी फसल तो बेच दी, लेकिन अब तक सैंकड़ों किसानों को बेची गई फसल का भुगतान नहीं हुआ है। खास बात यह है कि खरीदी बंद हुए साढ़े तीन महीने बीत जाने के बाद भी प्रशासन को यह तक पता नहीं है कि कितने किसानों का भुगतान शेष रह गया है और न हीं भुगतान कराने के कोई प्रयास किए जा रहे हैं। नतीजतन रोजाना ही किसान ऑफिसों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन कोई भी उनकी समस्या सुनने के लिए तैयार नहीं है। प्रशासन की यह उदासीनता चुनाव के समय प्रदेश सरकार के लिए बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है।
मुंगावली निवासी प्रदीपकुमार जैन ने तीन जून को सेवा सहकारी समिति झागरबमूरिया के खरीदी केंद्र पर तीन जून को अपना 40 क्विंटल चना बेचा। चना तुल जाने के बाद अब तक उन्हें अपनी बेची गई उपज का भुगतान नहीं मिला है। इसकी शिकायत वह कई बार अधिकारियों से कर चुके हैं, लेकिन अधिकारी उनकी समस्या पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। यह समस्या सिर्फ एक किसान की नहीं, बल्कि जिले में ऐसे सैंकड़ों किसान हैं, जो खरीदी केंद्रों पर अपनी फसल बेचने के बाद भुगतान के लिए चक्कर काट रहे हैं। किसानों का कहना है कि उनके हाथ से जहां उपज तो चली ही गई, वहीं भुगतान भी अब तक नहीं मिला। वहीं अब अधिकारी उनकी समस्या पर कोई गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं।
साहूकारों, बैंकों का बढ़ रहा किसानों पर ब्याज
किसानों के पास फसल ही आय का एक मात्र जरिया है और इसी से किसान और उसके पूरे परिवार का सालभर का खर्चा चलता है। इसी फसल से किसान साहूकारों और बैंकों का कर्जा चुकाता है। लेकिन तीन से चार महीने बीत जाने के बाद भी किसानों को बेची गई चना-मसूर का भुगतान न होने से किसानों को जहां परिवार का खर्चा चलाने के लिए आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है।वहीं कर्जा न चुका पाने की वजह से वह बैंकों में तो डिफाल्टर घोषित हो ही चुके हैं और बैंकों के साथ साहूकारों का भी ब्याज बढ़ता जा रहा है।
कितने किसानों का भुगतान शेष प्रशासन को यह भी पता नहीं
खरीदी केंद्रों के मिलावटी और बारिश से खराब हुए अनाज को नागरिक आपूर्ति निगम ने गुणवत्ताहीन बताकर रिजेक्ट किया तो खरीदी केंद्रों ने दलालों को नुकसान से बचाने के लिए उनके नाम पर किसानों का अनाज जमा करा दिया। इससे दलाल तो नुकसान से बच गए, लेकिन किसानों का भुगतान अटक गया। वहीं प्रशासन भी इन शेष किसानों का भुगतान समितियों को खुद ही करने के निर्देश देकर चुप बैठ गया। हर जनसुनवाई में दर्जनों किसान अपनी समस्या बताने के लिए पहुंच रहे हैं, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इतना ही नहीं कि कितने किसानों का भुगतान शेष है न तो किसी विभाग ने इसका आंकड़ा एकत्रित किया और न हीं प्रशासन ने भुगतान के लिए शेष किसानों की संख्या पता की।
कब होगा भुगतान किसी को नहीं पता
चना-मसूर खरीदी का शेष किसानों को कब भुगतान होगा, इसका भी किसी को कोई पता नहीं है। प्रशासन ने दो महीने पहले खरीदी केंद्रों को खुद ही अनाज बेचकर भुगतान करने के निर्देश दिए, लेकिन समितियों पर इतना अनाज बचा ही नहीं है कि वह किसानों का भुगतान कर सकें। वहीं जो सड़ा हुआ या खराब क्वालिटी का अनाज बचा भी है, मंडी में उसकी रेट बहुत कम हो चुकी है।
सालभर बाद भी नहीं मिली राहत राशि
जिले को सूखाग्रस्त घोषित कर प्रदेश सरकार ने तो पिछले वर्ष नबंबर महीने में ही राहत राशि जिले को जारी कर दी थी, लेकिन पहले सॉफ्टवेयर की समस्या और फिर उपचुनाव बताकर राशि नहीं बांटी गई। बाद में फिर से राशि आई जो पांच महीने बाद भी ज्यादातर किसानों के खातों में नहीं पहुंच सकी है। इससे किसानों ने अब राहत राशि मिलने की तो उम्मीद ही छोड़ दी है।
फसल बीमा राशि भी नहीं पहुंची खातों में
पिछले वर्ष खरीफ फसल में हुए नुकसान पर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत बीमा कंपनी ने साढ़े 18 हजार किसानों के लिए 21.76 करोड़ रुपए की बीमा राशि देने की बात कही थी। लेकिन दो महीने बाद भी यह बीमा राशि किसानों को नहीं मिल पाई है। वहीं प्रशासन इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है कि आखिर खातों में बीमा राशि डाली क्यों नहीं जा रही है।
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