पिता से सीखा करघा चलाना व बुनाई का धागा भरना
गायत्री कोली कहती हैं कि उन्होंने अपने पिता से हथकरघा चलाना सीखा और उसमें बुनाई का धागा भरना सीखा। इससे वह खुद ही हथकरघे में बुनाई करती हैं और आकर्षक किनार व ताने की जुड़ाई भी खुद ही करती हैं। साथ ही हथकरघे में आने वाली खराबी को भी खुद ही सुधार लेती हैं। पहले वह किराए के मकान में रहती थीं, इससे 14 साल तक किराए के उसी कमरे में लूम चलाया। पति बलवीर कोली टेलरिंग करते हैं। एक साल पहले खुद का मकान खरीदकर गायत्री व उनका परिवार अपने घर में रहने लगे हैं।
गायत्री कोली कहती हैं कि उन्होंने अपने पिता से हथकरघा चलाना सीखा और उसमें बुनाई का धागा भरना सीखा। इससे वह खुद ही हथकरघे में बुनाई करती हैं और आकर्षक किनार व ताने की जुड़ाई भी खुद ही करती हैं। साथ ही हथकरघे में आने वाली खराबी को भी खुद ही सुधार लेती हैं। पहले वह किराए के मकान में रहती थीं, इससे 14 साल तक किराए के उसी कमरे में लूम चलाया। पति बलवीर कोली टेलरिंग करते हैं। एक साल पहले खुद का मकान खरीदकर गायत्री व उनका परिवार अपने घर में रहने लगे हैं।
एक हजार से 10 हजार रुपए तक की बनाईं चंदेरी साड़ी
गायत्री कोली ने बताया कि सप्ताह में अधिकतम दो साडिय़ां ही बन पाती हैं और कई बार एक मंहगी साड़ी बनाने में ही एक सप्ताह से अधिक समय लग जाता है। इससे वह अब एक हजार रुपए कीमत से लेकर 10 हजार रुपए कीमत तक की चंदेरी साड़ी बना चुकी हैं। उनका कहना है कि एक हजार रुपए कीमत की साड़ी वह इसलिए बनाती हैं, ताकि हर कोई उसे खरीद सके।
गायत्री कोली ने बताया कि सप्ताह में अधिकतम दो साडिय़ां ही बन पाती हैं और कई बार एक मंहगी साड़ी बनाने में ही एक सप्ताह से अधिक समय लग जाता है। इससे वह अब एक हजार रुपए कीमत से लेकर 10 हजार रुपए कीमत तक की चंदेरी साड़ी बना चुकी हैं। उनका कहना है कि एक हजार रुपए कीमत की साड़ी वह इसलिए बनाती हैं, ताकि हर कोई उसे खरीद सके।
महिलाओं व युवतियों को साड़ी पहनने करती हैं प्रेरित
गायत्री कोली जहां खुद भी साड़ी पहनती हैं और महिलाओं व युवतियों को भी साड़ी पहनने के लिए प्रेरित करती हैं। उनका कहना है कि साड़ी सिर्फ भारतीय पहनावा ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का प्रतीक है और भारतीय संस्कृति में साड़ी को स्त्री के सम्मान एवं रक्षा का प्रतीक माना गया है। इसलिए महिलाओं व युवतियों को साड़ी पहनना चाहिए। उनका कहना है अन्य तरह के पहनावों की तुलना में महिलाएं साड़ी में ज्यादा अच्छी लगती हैं।
गायत्री कोली जहां खुद भी साड़ी पहनती हैं और महिलाओं व युवतियों को भी साड़ी पहनने के लिए प्रेरित करती हैं। उनका कहना है कि साड़ी सिर्फ भारतीय पहनावा ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का प्रतीक है और भारतीय संस्कृति में साड़ी को स्त्री के सम्मान एवं रक्षा का प्रतीक माना गया है। इसलिए महिलाओं व युवतियों को साड़ी पहनना चाहिए। उनका कहना है अन्य तरह के पहनावों की तुलना में महिलाएं साड़ी में ज्यादा अच्छी लगती हैं।