शहर में मजदूरी करके अपना परिवार चलाने वाले जयपालसिंह ने बताया कि जब वह अपनी माँ का इलाज कराने पहुंचे तो डॉक्टरों ने भोपाल ले जाने की बात कही। लेकिन भोपाल ले जाने के लिए सरकारी एम्बुलेंस नहीं मिली। इससे जल्दी भोपाल पहुंचने की मजबूरी में उन्हें छह हजार रुपए में किराए से प्राइवेट जीप लेकर जाना पड़ा। तब कहीं समय पर उनकी माँ भोपाल पहुंची और इलाज शुरू हो सका।
ऐंसी ही कहानी हरनामसिंह ने बताई, उन्हें भी एक्सीडेंट में घायल हुए अपने को इलाज के भोपाल ले जाने एम्बुलेंस नहीं मिली। इससे वह ट्रैन से घायल को लेकर गए। यह सिर्फ एक या दो लोगों की बात नहीं, बल्कि आए दिन मरीज और घायलों के परिजनों को ऐंसी ही समस्या का सामना करना पड़ता है।
रैफर की परंपरा, लेकिन एम्बुलेंसों पर नहीं ध्यान-
खास बात यह है कि जिला अस्पताल में मरीजों और घायलों को रैफर करने की तो परंपरा सी बन गई है। ऐंसे में सबसे ज्यादा परेशानी प्रसूता महिलाओ को होती है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग इन कंडम हो चुकी एम्बुलेंसों के रखरखाव और मरम्मत के प्रति बिल्कुल भी गंभीर नहीं है। नतीजतन जिम्मेदारों की इस अनदेखी का खामियाजा जिले की जनता को परेशान होकर भुगतना पड़ रहा है।
अधिकारियों में भी प्राइवेट वाहनों की हौड़-
जिले में सभी विभागों में अधिकारियों में लग्जरी प्राइवेट वाहनों का इस्तेमाल करने की होड़ लगी हुई है। इसके लिए विभाग के वाहनों को सुधरवाने की वजाय अधिकारी 20 हजार रुपए महीने में प्राइवेट वाहन किराए पर लगा लेते हैं। नतीजतन जिलेभर के सरकारी ऑफिसों में करीब 150 प्राइवेट वाहन किराए पर लगे हुए हैं और हर महीने जिलेभर में 30 लाख रुपए इन किराए के वाहनों पर खर्च हो रहा है। जबकि हर महीने खर्च हो रही इस राशि में हर महीने तीन नई गाड़ियां खरीदी जा सकती हैं।