इतना ही नहीं ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में तो मरीजों को मलेरिया के इंजेक्शन ही नहीं मिल रहे हैं। इससे इलाज कराने मरीज मंहगे इंजेक्शन खरीदने मजबूर हैं। विभाग का सरकारी रिकॉर्ड जिलेभर में एक साल में मात्र 93 मरीज ही मलेरिया पीडि़त बता रहा है।
40 फीसदी मरीज मलेरिया के
डॉक्टरों की मानें तो अस्पतालों में इलाज कराने पहुंचने वाले मरीजों में 40 फीसदी मरीज मलेरिया पीडि़त पाए जा रहे हैं, जिसमें 15 प्रतिशत मरीज फेल्सीफेरम के हैं। इसका अंदाजा पैथोलॉजियों पर होने वाली जांच रिपोर्टों और मेडीकल स्टोरों पर बिक रही दवाओं से भी लगाया जा सकता है।
जिला प्रशासन भी मौन
जहां ज्यादातर मरीज सिर्फ मलेरिया और फेल्सीफेरम की ही दवा खरीदते देखे जा सकते हैं। इसके बावजूद भी विभाग कहीं दवाओं का छिड़काव कराने या दवाईयां वितरित कराने की बात तो दूर जिले में कहीं भी सर्वे तक नहीं करा रहा है।
इतना ही नहीं विभाग की इस लापरवाही पर जिम्मेदार जिला प्रशासन भी मौन बना हुआ है। ढ़ाई से तीन हजार खर्च करने पर ही हो रहा मरीज का इलाज- मलेरिया पीडि़त को अपना इलाज कराने के लिए जहां 800 से 900 रुपए की दवाएं खरीदना पड़ रही हैं, तो वहीं रोजाना 250 से 400 रुपए कीमत के इंजेक्शन लगवाना पड़ रहे हैं।
महंगा इलाज कराने को मजबूर
इतना भी नहीं जांच भी 150 से 200 रुपए खर्च करने पर ही हो रही है। इससे एक मरीज का इलाज खर्च होने पर ढ़ाई से तीन हजार रुपए खर्च हो रहे हैं। हालत यह है कि कई परिवारों में तो मलेरिया के दो से तीन मरीज हैं, इससे उन्हें 9 से 10 हजार रुपए इलाज पर खर्च करना पड़ रहे हैं।
इसके बावजूद भी स्वास्थ्य विभाग और मलेरिया विभाग ऑफिस से बाहर निकलने के लिए तैयार नहीं है। गंभीर मरीज मिलने के बाद भी यह लापरवाही- जिले में स्वाईन फ्लू, जापानी बुखार, दिमागी बुखार, स्क्रब टाईफस और डेंगू के मरीज मिलने के बाद जहां शुक्रवार को जिले के एक मरीज में चिकन गुनिया की पुष्टि हो चुकी है। इसके बावजूद भी विभाग की यह लापरवाही समझ से परे है।
जा रहा है। यदि मलेरिया की ऐसी स्थिति हैं तो दिखवाते हैं।