जिनकी छतें तिरपालों से बंधी हुई थी तो वहीं रस्सियों से इमरजेंसी गेट बंधे मिले। इतना ही नहीं, ओवरलोडिंग भी ऐसी कि पैर रखने तक को जगह नहीं बची थी। लेकिन इन पर कार्रवाई होना तो दूर की बात, कभी भी विभाग या प्रशासन ने इन कंडम यात्री बसों की जांच करना तक मुनासिब नहीं समझा। नतीजतन अपनी जान जोखिम में डालकर यात्री इनमें यात्रा करने के लिए मजबूर हैं।
पत्रिका ने रविवार को यात्री बसों की हकीकत जानी, तो यात्री बसों को भले ही विभाग ने फिटनेस प्रमाण पत्र जारी किए हों, लेकिन यात्रियों की सुरक्षा तो दूर कई यात्री बसें खुद ही असुरक्षित सी दिखीं। कई बसों की छतों पर तिरपालें बंधी हुई थीं और इमरजेंसी गेट रस्सियों से बंधे हुए थे।
तो कई बसों में गेटों और कुर्सियों के पास नुकीली चद्दरें निकली मिलीं। इसके अलावा कुछ बसों में तो इमरजेंसी गेटों पर कुर्सियां सेट कर दी गईं हैं, इससे इमरजेंसी गेट होने या न होने एक जैसा ही है।
इसके बाद भी इन यात्री बसों में ओवरलोडिंग के हालत ऐसे हैं, जहां सीटें फुल होने के साथ ड्राईवर के पास इंजन के बोनट पर भी छह से आठ यात्री बिठाए जाते हैं। वहीं फिर पूरी गैलरी में खड़े यात्रियों से लोगों को पैर रखने की भी जगह नहीं बचती हैं। इसके बाद भी न तो इन पर कभी ओवरलोडिंग पर कार्रवाई होती है और न हीं फिटनेस पर।
ज्यादा सवारी बिठाने सीटों के बीच के गेप भी घटाए-
यात्री बसों में प्रत्येक दो सीटों के बीच पर्याप्त मात्रा में गेप रहता है, ताकि यात्री सीट पर बैठ सके और उसके पैर दूसरी सीट से न टकराएं। लेकिन ज्यादा सवारी बिठाने के चक्कर में कई बसों में तो सीटों के इस गेप को ही घटाकर सीटों की संख्या बढ़ा दी गई है।
इससे सीटों के बीच यात्रियों को फंसकर बैठना पड़ता है। वहीं बसों में न तो महिलाओं के लिए कोई सीट आरक्षित दिखी और न हीं विकलांगों के लिए। किराया सूची नहीं और न हीं मिलते टिकिट-
ज्यादातर यात्री बसों में न तो बस स्टाफ यूनिफॉर्म पहनता है और न हीं उनमें कोई किराया सूची लगी हुई है। इसके अलावा ज्यादातर बसों में किराया तो यात्रियों से मनमाना वसूल किया जाता है, लेकिन उन्हें टिकिट नहीं दिए जाते हैं। यदि कभी बस दुर्घटना हो गई तो उसमें घायल होने वाले लोगों के पास टिकिट ही नहीं, इससे वह बीमा क्लेम के हकदार भी नहीं रहते हैं।