डोल ग्यारस पर विभिन्न मंदिरों से विमान शोभा यात्रा में शामिल होंगे। इनमें सबसे आगे बड़ा हनुमान मंदिर का सोने-चांदी से बना विमान शामिल होगा। जिसमें रामलला विराजमान होकर जल विहार के लिए निकलेंगे। यह विमान सबसे आगे चलेगा।
शनिवार को इसमें सोने का कलश है और पीछे हनुमान जी पर भी सोने का वर्क किया गया है। इसमें 25 ग्राम सोना लगा है। बाकी कलश चांदी का बना है, जिसमें 35 किलो चांदी लगी है।
शनिवार को शशीन्द्र राणा चौराहे पर गड्ढों को भरने का काम शुरू हो गया। शोभायात्रा से पहले इसे दुरुस्त करवाया जाएगा। इसके अलावा तालाब में जमा कचरे की भी सफाईकरवा दी गई है। विमानों के चबूतरा और विसर्जन स्थल पर भी साफ-सफाईहो गई है।
इधर,मुनिश्री बोले मन को वश में करना एक और षटकाय जीवों की रक्षा करना ही उत्तम संयम धर्म :-
वहीं दूसरी ओर पर्यूषण पर्व के अवसर पर मुनिश्री निर्वेगसागर महाराज ने कहा कि अपनी इंद्रियों व मन को वश में करना एक और षटकाय जीवों की रक्षा करना ही उत्तम संयम धर्म है। मुनिश्री के अनुसार सम्यक रूप से यम अर्थात नियंत्रण सो संयम है।
पृथ्वीकायिक आदि पंचस्थावर एवं त्रस कायिक जीवों की विराधना हिंसा नहीं करना तथा पांच इंद्रिय और मन को वश में रखना उत्तम संयम धर्म है। संयम धर्म के पालन के लिए असंयमी निरंतर हिंसा आदि व्यापारों में लिप्त होने से अशुभ कर्मों का संचय करता है। संयम के बिना स्वर्ग मोक्ष आदि की संपदा नहीं मिल सकती है। संयम योग पर्याय की दुर्लभता का चिंतन करना चाहिए।
सत्य को सहन करना कटु होता है
मुनिश्री प्रशांतसागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए बताया कि जब तक अपने अंदर क्रोध, मान, माया रूपी मद विद्यमान है तब तक शकर रूपी सत्य का स्वाद नहीं आएगा।
मुनिश्री प्रशांतसागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए बताया कि जब तक अपने अंदर क्रोध, मान, माया रूपी मद विद्यमान है तब तक शकर रूपी सत्य का स्वाद नहीं आएगा।
मैं राजा हूं यह सत्य है या फिर मेरा स्वप्न में राज्य छिन गया वह सत्य है। न यह सत्य है और न ही वह सत्य है। आप भले राजा हो कब तक राजा रहोगे न आप राजा रहने वाले हैं और न ही आपका राज्य रहने वाला है।
इस वसुंधरा का स्वामी न कोई था और न कोई रहेगा। सत्य को सहन करना बड़ा कटु होता है। सत्य अहिंसा की रक्षा की करने वाली वाणी है। बोली के द्वारा बिगड़ते काम बन जाते है और बोली के द्वारा ही बने काम बिगड़ जाते है।
मुनिश्री निर्वेगसागर महाराज ने बताया कि अनादिकाल से हम राग की उपासना करते आ रहे हैं जब तक जीवन में सत्य का बोध नहीं होता तब तक सत्य को समझना कठिन है। सत्य को सत्य स्वीकारने की हिम्मत तो रखो जिस प्रकार मृग मारिचका को पानी का आभास होता है लेकिन पानी नहीं मिलता है और पानी के खोज में अपनी जान दे देता है और उसे सत्य का बोध नहीं होता।
चारों तरफ सत्य है लेकिन ये आंखे सत्य को स्वीकारती नहीं। मोह सत्य को स्वीकार भी कर ले तो जीवन में उतारने के लिए तैयार नहीं होता। जिसने संसार को स्वरूप जान लिया शरीर के माध्यम से सहयोगी बनाता है जीवन में उत्तम सत्य को स्वीकारता है। जीवन में कोई साथ देने वाला है तो वह सत्य है। जीवन में संयम तभी आएगा जब सत्य को जीवन में लाओगे।