सुभाषगंज जैन मंदिर पर मंगलवार को मुनिश्री प्रशांत सागरजी व मुनिश्री निर्वेगसागरजी महाराज के सानिध्य में गुरू पूर्णिमा पर्व guru purnima celebration मनाया गया। इस दौरान अष्ट द्रव्य से सजे थालों से अघ्र्य चढ़ाते हुए महापूजन कर गुरू वंदना की गई। इस दौरान मुनिसंघ द्वारा गुरूओं का महत्व बताया गया। निर्वेगसागरजी महाराज ने बताया कि गुरू की भक्ति गुरू को मनाने के लिए नहीं गुरू जैसा बनने के लिए होती है।
बच्चो की जिंदगी में आज परिवर्तन आ गया
पुण्यशाली व्यक्ति को गुरू मिलते है। आज का पर्व गुरू पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्ध है जैन दर्शन में भी इसका इतिहास जुड़ा है। गुरू के कहे वचनों को हम जीवन में उतारते है तो थोड़े से शब्द ही हमें गुरू पूर्णिमा को सार्थक करा सकते है। उन्होंने बताया कि बच्चों को मां जन्म देकर पालन पोषण करती है पिता बच्चों को सुख साधन जुटाते है गुरू बच्चों के सुख के साथ-साथ बच्चों का हित किस में यह सोचते है। बच्चो की जिंदगी में आज परिवर्तन आ रहा है। कारण हम गुरू की बात तो सुन रहे लेकिन जीवन में नही ला रहे।
गुरू पूरी मां
आचार्य महाराज कहते है नौकरी नहीं व्यवसाय करो। संसार के स्वार्थ पूरे करने की अपेक्षा स्वावलंबी बनो। अपना ही व्यापार करो। जहां-जहां आपके बच्चे पढ़ रहे है वहां गुरू की संगत्ति ही नहीं मिलती है। कितने नौकर नौकरानी बन रहे है उन्हें स्वावलंबी बनाओ। हम गुरू पूर्णिमा मनाना चाहते है तो गुरू पूरी मां है। गुरू पूर्णिमा पर संकल्प करो। बच्चे है तो पाठशाला जरुर भेजें।
गुरू का महत्व अपनी परंपरा में है
मुनिश्री प्रशांत सागरजी महाराज ने बताया कि जिस प्रकार कलेक्टर के पास जाना है तो उसके पीए के माध्यम से जाना होता है उसी प्रकार तीर्थंकर के पीए गणधर होते है इसलिए गणधर का ज्यादा महत्व होता है। यह गुरू का महत्व अपनी परंपरा में है। आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के मार्गदर्शन में हजारों-हजारों त्यागी व्रती जिन शासन की साधना कर रहे है।