जिले में एक लाख सात हजार 885 हेक्टेयर में उड़द की फसल है। बारिश थमते ही किसानों ने खेतों से कीचड़ कम होते ही फसलों की कटाई शुरू कर दी थी। इससे जिले भर में करीब 35 हजार हेक्टेयर की फसल खेतों में कटी हुई सूखने और थ्रेसिंग के इंतजार में रखी थी। लेकिन शुक्रवार शाम से शुरू हुई बारिश से भीगी हुई फसल को सडऩे से बचाने किसान सुबह से ही हवा लगने के लिए खेतों में फैलाते दिखे और बूंदाबांदी शुरू होते ही उसे फिर समेटने और तिरपालों से ढंकने का प्रयास करते रहे। पत्रिका ने शनिवार को कचनार, अमाही, मूडरा, महुआखेड़ा, हुरी, अखाईटप्पा, गोरा, धमना, मसीदपुर, आमखेड़ा, तूमैन, मोहरी सहित आसपास के कई गांवों की स्थिति जानी। जहां पर खेतों में खड़ी फसल की फलियों में दानों में फफूंद दिखी और कटी रखी फसलें सडऩे लगी हैं।
ऐसे समझें नुकसान की स्थिति
जिले में कम से कम एक क्विंटल प्रति बीघा उत्पादन होने की संभावना थी। इससे 35 हजार हेक्टेयर की 1.75 लाख बीघा जमीन में 1.75 लाख क्विंटल उड़द का उत्पादन होता। अभी मंडी में करीब 3500 रुपए क्विंटल का भाव चल रहा है। इससे 1.75 लाख क्विंटल उड़द की कीमत 61.25 करोड़ रुपए है। लेकिन यदि यह फसल खेतों में रखी हुई सड़ गई तो किसानों को 61.25 करोड़ रुपए का नुकसान होगा।
जिले में कम से कम एक क्विंटल प्रति बीघा उत्पादन होने की संभावना थी। इससे 35 हजार हेक्टेयर की 1.75 लाख बीघा जमीन में 1.75 लाख क्विंटल उड़द का उत्पादन होता। अभी मंडी में करीब 3500 रुपए क्विंटल का भाव चल रहा है। इससे 1.75 लाख क्विंटल उड़द की कीमत 61.25 करोड़ रुपए है। लेकिन यदि यह फसल खेतों में रखी हुई सड़ गई तो किसानों को 61.25 करोड़ रुपए का नुकसान होगा।
सिर्फ सोयाबीन की फसल को ही लाभ
किसानों और कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक इस बारिश से सिर्फ सोयाबीन की देरी से पकने वाली फसल को ही लाभ है। जिले में इस बार एक लाख 48 हजार 96 हेक्टेयर में सोयाबीन की फसल है। इसमें से करीब 70 हजार हेक्टेयर में जल्दी पकने वाली किस्म बोई गई है, जो पकने लगी है। वहीं शेष जमीन में देरी से पकने वाली किस्म को सोयाबीन है, जो अभी हरा है और फलियों में दाना बनने की स्थिति है।
किसानों और कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक इस बारिश से सिर्फ सोयाबीन की देरी से पकने वाली फसल को ही लाभ है। जिले में इस बार एक लाख 48 हजार 96 हेक्टेयर में सोयाबीन की फसल है। इसमें से करीब 70 हजार हेक्टेयर में जल्दी पकने वाली किस्म बोई गई है, जो पकने लगी है। वहीं शेष जमीन में देरी से पकने वाली किस्म को सोयाबीन है, जो अभी हरा है और फलियों में दाना बनने की स्थिति है।