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दुनिया का ऐसा मंदिर जहां राम के बिना होती है मां सीता की आराधना

locationअशोकनगरPublished: Mar 24, 2019 03:55:35 pm

Submitted by:

Amit Mishra

श्रीलंका के बाद दुनिया में संभवतः यह दूसरा मंदिर है जहां पर माता सीता की आराधना भगवान राम के बिना होती है।

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दुनिया का ऐसा मंदिर जहां राम के बिना होती है मां सीता की आराधना

अशोकनगर@ अरविंद जैन की रिपोर्ट…
माता सीता की आराधना भगवान राम के बिना। यह बात सुनने में भले ही अजीब लगे, क्योंकि मां सीता का भगवान राम से अलग अस्तित्व देख पाना संभव नहीं है। ज्यादातर सभी मंदिरों में मां सीता भगवान राम के साथ विराजमान दिखती हैं तो कई जगहों पर राम दरबार की मूर्तियों में सीताजी भगवान राम, लक्ष्मण और हनुमान जी के साथ विराजमान रहती हैं और इसी रूप में उन्हें सदियों से पूजा जा रहा है। लेकिन देश में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां माता सीता की आराधना भगवान राम के बिना होती है।

मंदिर जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर…
हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले के करीला स्थित माँ जानकी मंदिर की। श्रीलंका के बाद दुनिया में शायद यह दूसरा मंदिर होगा जहां पर माता सीता की आराधना भगवान राम के बिना होती है। अशोकनगर जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर निर्जन पहाड़ी पर स्थित करीला में माता सीता अपने पुत्र लव-कुश और महर्षि बाल्मीकि के साथ विराजमान हैं। सीता जी के इस मंदिर में भगवान राम की मूर्ति नहीं है और यहाँ सीताजी की आराधना उनके पुत्र लवकुश के साथ सदियों से की जा रही है।

 

अश्वमेध यज्ञ से जुड़ा हुआ है करीला का इतिहास-
कहा जाता है कि लंका से वापस लौटने के बाद जब भगवान राम अयोध्या के राजा हो गए और माता सीता अयोध्या की महारानी थी। उसी समय अयोध्या के किसी व्यक्ति के कहने पर भगवान राम ने सीता जी का त्याग किया तो लक्ष्मण जी उन्हें करीला स्थित निर्जन वन में छोड़कर चले गए थे।

घोड़े को पकड़कर बांध लिया था…
यहां पर महर्षि बाल्मीकि का आश्रम था, जिसमे सीता जी ने अपने पुत्रों को जन्म दिया और लव-कुश ने यहीं पर शिक्षा-दीक्षा ली। कहा जाता है कि इसी जगज पर लव-कुश ने भगवान राम के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को पकड़कर बांध लिया था।

15 से 20 लाख श्रद्धालु इस मेले में पहुंचने लगे हैं…
रंगपंचमी पर लव-कुश के जन्म का उत्सव मनाने जुटते हैं श्रद्धालु-
करीला स्थित माँ जानकी मंदिर पर रंगपंचमी पर मेला लगता है। कहा जाता है कि लव-कुश के जन्म उत्सव पर रंगपंचमी के दिन अप्सराओं ने स्वर्ग से आकर बधाई नृत्य किया था। तभी से यहाँ पर रंगपंचमी पर मेला लगता है और अब 15 से 20 लाख श्रद्धालु इस मेले में पहुंचने लगे हैं। जहाँ पर वह लव-कुश का जन्म उत्सव मनाते हैं और बधाई कराते हैं।


मन्नत पूरी होने पर कराई जाती है राई-
माता सीता के दरबार में हर साल 15 से 20 लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं और मन्नत पूरी हो जाने पर मंदिर परिसर में बुंदेलखंड के प्रसिद्ध लोक नृत्य राई कराते हैं। इससे मेले के दौरान हजारों की संख्या में राई नृत्य होते हैं।


दुनिया का अनोखा रंगमंच बनता है करीला-
रंगपंचमी पर करीला दुनिया का अनोखा रंगमंच बन जाता है। जहाँ पर हजारों को संख्या में नृत्यांगनाएं बिना किसी मंच या स्टेज के रात के अंधेरे में मशालों की रोशनी के बीच खुले आसमान में ऊबडख़ाबड़ खेतों में राई नृत्य करती हैं। इससे पूरी रात करीला मंदिर और मेला क्षेत्र ढोलक की थाप और घुंघरुओं की आवाज से गूंजता रहता है।

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