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बाबूजी खिलौने ले लो, कोई नहीं खरीद रहा, सस्ते दाम में बेच रहे

locationअशोकनगरPublished: Jan 13, 2019 10:44:46 pm

Submitted by:

Manoj vishwakarma

आजीविका पर संकट: मकर संक्रांति पर पिता के बनाए खिलौने बेचने बच्ची की गुहार

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बाबूजी खिलौने ले लो, कोई नहीं खरीद रहा, सस्ते दाम में बेच रहे

अशोकनगर. यह न कहानी है और न ही खबर, यह जिंदगानी है उस परिवार की जिसने बड़ी ही उम्मीद के साथ मकर संक्रांति पर बिकने वाले मिट्टी के खिलौने बनाए। साथ ही दो छोटे मासूमों ने इन खिलौनों को बेचने के लिए शहर के गांधी पार्क पर सड़क किनारे दुकान लगाई, लेकिन कोई उन खिलौनों को खरीदने नहीं आया। इससे 12 साल की मासूम वहां से निकलने वाले हर व्यक्ति से एक ही गुहार लगाती दिखी कि बाबूजी गडग़डिय़ा ले लो, कोई खरीद नहीं रहा इसलिए पांच रुपए कम में बेच रहे हैं।
कभी मकर संक्रांति पर सबसे ज्यादा बिकने वाले मिट्टी के इन खिलौनों को आज बदलते जमाने के साथ कोई पूछ नहीं रहा। इससे अब उन परिवारों की आजीविका पर भी संकट दिखने लगा है जो परिवार मकर संक्रांति पर बेचने के लिए मिट्टी से खिलौने बनाते हैं। शहर के मोती मोहल्ला में रहने वाले महेश प्रजापति ने करीब 10 दिन से इस उम्मीद में मिट्टी के खिलौने बना रहे थे कि संक्रांति पर इन्हें बेचेंगे, इसमें उनकी तीन बेटियां मदद में जुटीं और 12 साल की बेटी रेखा अपने छोटे भाई के साथ गांधी पार्क पर दुकान लगाकर इन्हें बेचने बैठी। तीन दिन के इस त्यौहार में उनके खिलौने कम बिके तो रेखा ने लोगों को रोककर खिलौने दिखाए और कहा कि कोई खरीद नहीं रहा है इसलिए कम दाम में बेच रहे हैं।
दीपावली पर भी नहीं बिक पाते दीप

घर पर खिलौने बना रहे महेश प्रजापति ने बताया कि इन्हें बनाने में भारी मेहनत करना पड़ती है और पूरा परिवार इसमें लगा रहता है। बनाने के बाद सुखाना पड़ता है और फिर भट्टी में पकाना पड़ता है। रंग भरने के बाद यह तैयार होते हैं, लेकिन अब इनकी बिक्री न होने से आजीविका संकट में दिख रही है। वहीं दीपावली पर भी चायनीज दीपों के आ जाने से मिट्टी के दीप कोई नहीं खरीदता। हालत यह है कि खिलौने तैयार करने में पिता द्वारा की गई मेहनत को 12 साल की मासूम को पांच रुपए कम में बेचने मजबूर है।
इधर, ट्रेनें बंद, तो इंतजार में पटरियों पर खड़े नजर आए यात्री

अशोकनगर. रेलवे लाइन पर स्लीपर और पटरियां बदलने का काम चल रहा है। इसके लिए रविवार को पांच घंटे का मेगा ब्लॉक लगाया गया। इससे दिन की ज्यादातर ट्रेनें बंद रहीं। त्यौहार का समय होने और ट्रेनें कम होने की वजह से लोग पटरियों पर खड़े होकर इंतजार करते नजर आए। दिन में जो ट्रेन आईं,उनमें भीड़ की वजह से लोगों को बैठने की बात तो दूर पैर रखने तक की जगह नहीं मिली और लोग ट्रेनों मे ंबैठने के लिए जान जोखिम में डालकर पटरियों पर खड़े रहे। वहीं यात्री बसों में भारी भीड़ रहीं और बसें ओवरलोड होकर चलीं। इससे लोगों को बसों की छत पर बैठकर यात्रा करना पड़ी।
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