करीब 5 साल पहले जयलाल अहिरवार ने मां शारदा इंटरप्राईजेज से सीमेंट की बोरियां ली थीं। जिसके बदले में उन्होंने प्रोपराईटर लक्ष्मी बाई (72) के नाम एक चैक दिया था। लेकिन चैक बाउंस हो गया। उन्होंने जयलाल से रुपए मांगे तो उसने नहीं दिए। जिसके बाद मामला कोर्ट में लगा दिया गया।
जयलाल को इस मामले में सजा भी हुई और फिलहाल वह जमानत लेने के बाद से फरार चल रहा था। उसके घर पर जब लोक अदालत का नोटिस पहुंचा तो उसकी पत्नि व अन्य परिजनों ने दुकान पर जाकर अपनी गरीबी का हवाल देते हुए रुपए देने में असमर्थता जताई। जिसके बाद लक्ष्मी बाई ने उनके 1 लाख रुपए माफ करते हुए कोर्ट में राजीनामा कर लिया। अब जयलाल अपने परिवार के साथ रह सकेगा।
पौधे जरूर लगवाएंगे
राजीनामा करते हुए लक्ष्मी बाई के पुत्र संजय रघुवंशी ने कहा कि जयलाल को 50 पौधे लगाने होंगे। इस पर न्यायाधीश ने भी जयलाल से पौधे लगाने के लिए कहा। संजय ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए पौधरोपण जरूरी है। इसलिए उन्होंने पौधे लगाने की शर्त रखी है। यदि जयलाल को इसमें भी दिक्कत आएगी तो वे उसकी मदद करेंगे। लेकिन पौधे जरूर लगवाएंगे।
पौधा भी भेंट किया गया
नेशनल लोक अदालत में राजीनामा के आधार पर विभिन्न प्रकरणों का निराकरण किया गया। जिसमें बैंक, नपा, फायनेंस कंपनियों, विद्युत वितरण कंपनी सहित पारिवारिक व जमीनी मामले में शामिल थे। राजीनामे के बाद संबंधितों को एक-एक पौधा भी भेंट किया गया।
इस लोक अदालत में कुल 17 खण्डपीठों द्वारा मामलों का निराकरण हुआ। इसमें प्रीलिटिगेशन के 4 हजार 8 प्रकरण रखे गये थे जिनमें से 419 निराकृत हुए। इसी प्रकार न्यायालयीन प्रकरण 1516 में से 231 प्रकरणों का निराकरण हुआ और कुल 4 करोड़ 10 लाख 17 हजार 693 रुपए की राशि का अवार्ड हुआ।
डेढ़ सदी पुराना जमीनी विवाद भी निबटा
करीब 700 बीघा जमीन के एक मामले में भी राजीनामा हो गया है। यह मामला इसलिए खास है कि यह एक ही परिवार के लोगों के लिए सन 1850 से चला आ रहा है। लगभग एक साल पहले यह मामला कोर्ट पहुंचा था। जिसमें 61 लोग शामिल थे। जिनमें से 31 लोगों ने प्रकरण वापस ले लिया और शेष बचे लोगों ने शनिवार को लोक अदालत में राजीनामा कर लिया।
फिलहाल एक पक्ष रामकुश्लेन्द्र रघुवंशी व दूसरे पक्ष से रघुवीरसिंह मुख्य थे। प्रकरण में एडवोकेट गिरीश कुमार, गिरजेश कुमार, हरिओम शर्मा, राजेन्द्र लोधी व हरिओम राजौरिया सहित दो अन्य वकीलों ने भी राजीनामा के लिए प्रयास किया। राजीनामा के बाद सभी को एक-एक पौधा भेंट किया गया।
डेढ़ साल से अलग रह रहे पति-पत्नि को मिलाया
लोक अदालत में कई पारिवारिक मामले में सुलझे। इसमें डेढ़ से अलग रहे रहे पति-पत्नि को भी अदालत ने दोबारा एक किया। अनिल व अनीता का विवाह करीब 14 साल पहले हुआ था। शादी के लगभग डेढ़ साल बाद अनिल को स्मैक की लत लग गई। वह अनीता व बच्चों से मारपीट करने लगा।
एक-दूसरे के साथ रहने के लिए हुए राजी
चार साल पहले एक जोड़ी कपड़े में उसे घर से भगा दिया था। तभी से दोनों के बीच प्रकरण चल रहा था। अनिल की ओर से भी बच्चों को प्राप्त करने के लिए कोर्ट में अर्जी लगाई थी। जिला एवं सत्र न्यायाधीश अखिलेश जोशी की खंडपीठ में समझाइश के बाद दोनों एक-दूसरे के साथ रहने के लिए राजी हो गए। अनिल ने आगे से ऐसी गलतीन करने की बात कही। इसके दोनों दोनों ने एक दूसरे को माला पहनाई और राजी-खुशी घर लौट गए।
महाप्रबंधक पहुंचे लोक अदालत
एसबीआई के महा प्रबंधक कौशिक सिन्हा, मुख्य प्रबंधक उम्मेदमल गोल्दा और क्षेत्रीय प्रबंधक राकेश अग्रवाल भी लोक अदालत पहुंचे। नेशनल लोक अदालत में बैंक की सभी शाखाओं के कुल 455 प्रकरण रखे गए थे। जिनमें से 56 प्रकरणों में राजीनामा हुआ। इसमें एनपीए खाते भी शामिल हैं।
इस दौरान महां प्रबंधक ने कहा कि इस लोक अदालत में ऋणी लोगों ने अच्छा उत्साह दिखाया है और कर्ज से मुक्ति पाई है। इस दौरान स्टाफ के गौरव अग्निहोत्री, आशुतोष सोनी, आदिति अग्निहोत्री, दीपक त्रिपाठी, लायकसिंह खरे, हुकुमसिंह मीना भी उपस्थित रहे।
बेटी को मिला पिता का साथ
पिछले दस साल से अलग रहे पति-पत्नि भी लोक अदालत में एक हो गए। दोनों के बीच 2009 में विवाह हुआ और कुछ दिन बाद ही पति-पत्नि अलग-अलग रहने लगे। बेटी मां के साथ रहती थी और दिन दिन मां से पिता से मिलने के लिए कहती थी। उनके बीच भरण पोषण के लिए प्रकरण चल रहा था और तारीख पर भी बेटी अपने पिता से नहीं मिल पाती थी।
जिला एवं सत्र न्यायाधी के न्यायालय में एडवोकेट शिवसिंह रघुवंशी एवं हरिराम अहिरवार व भगवती लोधी द्वारा समझाइश के बाद दोनों साथ रहने के लिए तैयार हो गए। अब बेटी को मां के साथ अपने पिता का भी प्यार मिल सकेगा।