वहीं एनजीटी के निर्देश पर इस सरोवर में प्रतिमा विसर्जन पर तो रोक लग गई, लेकिन तीन गंदे नाले इसमें आधे शहर की गंदगी पहुंचा रहे हैं, जिस पर अब तक रोक नहीं लग सकी है। नजीतजन अब तुलसी सरोवर अपनी दुर्दशा को दिखाते हुए शहरवासियों से खुद ही बचाने की गुहार लगाता नजर आ रहा है।
वायपास रोड किनारे स्थित तुलसी सरोवर तालाब बारिश के मौसम में भरकर शहर को खूबसूरती बना देता है। भीषण गर्मी के मौसम में जब शहर के ज्यादातर हिस्से में लोग भू-जलस्तर घटने से परेशान रहते हैं, उस समय सरोवर के आसपास की कॉलोनियों में भू-जलस्तर पर्याप्त रहता है और घरों पर लगे ट्यूबवेल और हैण्डपंप लोगों को पर्याप्त पानी उपलब्ध कराते हैं। लेकिन जिम्मेदारों द्वारा कोई ध्यान न दिए जाने से तालाब की भराव क्षमता लगातार घट रही है।
वहीं अब सरोवर की खाली हो चुकी जगह पर लोगों ने कब्जा करने की तैयारी शुरू कर दी है और लोग मिट्टी डालकर तालाब को समतल करने में लग गए हैं, ताकि उस जगह पर पानी का भराव बंद हो सके। यदि प्रशासन ने समय रहते ध्यान नहीं दिया तो सरोवर अस्तित्व खोने की कगार पर पहुंच जाएगा और जिले के अन्य कई तालाबों की तरह यह भी सिर्फ नाम का ही तालाब बनकर रह जाएगा।
तीन साल पहले 20 लाख खर्च कर बना टापू भी खत्म होने लगा-
प्रशासन ने तीन साल पहले तालाब का जीर्णाेद्धार करने का अभियान चलाया था, गहरीकरण में करीब 35 लाख रुपए की राशि खर्च की गई थी और इसमें से 20 लाख रुपए सरोवर के बीचों बीच टापू विकसित करने पर खर्च किए थे। टापू बनाया भी गया और उस पर आकर्षक पेड़ भी लगाए गए थे, लेकिन बाद में कोई ध्यान नहीं दिया गया।
इससे अनदेखी के चलते टापू पर लगे पेड़ तो खत्म हो ही गए, वहीं टापू भी खत्म होने की कगार पर पहुंच गया और इस टापू को बनाने में इस्तेमाल की गई मिट्टी भी सरोवर में भी भरकर भराव क्षमता को घटा रही है। नतीजतन सरोवर पर तीन साल पहले खर्च की गई राशि बेकार जाती नजर आ रही है।
भू-जल रीचार्ज करने वाले स्रोतों पर नहीं किसी का ध्यान-
यह सिर्फ शहर के तुलसी सरोवर की ही बात नहीं है, पास में ही स्थित पछाड़ीखेड़ा तालाब तो पूरी तरह से खत्म ही हो चुका है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में पंचायतों के अधिकार वाले ज्यादातर सभी तालाब खत्म हो चुके हैं और लोगों ने उन पर कब्जा कर लिया है, इन तालाबों में पानी जमा होना तो दूर की बात लेकिन लोगों ने खेती करना जरूर शुरू कर दिया है।
इसके अलावा जिले की सभी 334 ग्राम पंचायतों में करीब 1952 सार्वजनिक कुए थे, जिनमें से 80 फीसदी सार्वजनिक कुए अस्तित्व खो चुके हैं और यही स्थिति जिले के छोटे नदी-नालों की है। जबकि यह सभी स्रोत भू-जलस्तर को रीचार्ज करने में मुख्य भूमिका निभाते थे, लेकिन घटते भू-जलस्तर को देखकर भी इन्हें सहेजने के लिए जिम्मेदार गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं।
अभियान: सरोवर को सहेजने आज से जुटेंगे श्रमदानी-
पिछले पांच साल से पत्रिका द्वारा शहर के तुलसी सरोवर में अमृतम जलम अभियान चलाया जाता है। जिसमें जुटकर शहरवासी सरोवर की साफ-सफाई करते हैं और प्रशासन को इस तालाब को सहेजने के लिए प्रेरित करते हैं। इस बार भी 19 मई से पत्रिका द्वारा तुलसी सरोवर में अमृतम जलम अभियान शुरू किया जा रहा है। जिसमें शहर के जागरुक लोग जुटकर सरोवर को सहेजने के लिए श्रमदान करेंगे।
भविष्य के लिए जल सहेजने सिर्फ यह करने की जरूरत-
– लोग अपने-अपने क्षेत्रों के सार्वजनिक कुओं के कचरों को हटवाकर सफाई कराएं, ताकि बारिश के मौसम में पानी से भरकर यह भू-जलस्तर को बढ़ा सकें।
– सूख चुके नदी-नालों में कचरा फैंकना बंद करें और किनारे के पेड़ों की कटाई बंद करें ताकि किनारों की मिट्टी भरकर इन नदी-नालों को पूरी तरह से खत्म न कर सके।
– प्रशासन को भी ग्रामीण क्षेत्र के पंचायतों के अधिकार क्षेत्र वाले तालाबों को अतिक्रमण मुक्त कराकर पारों की फिर से मरम्मत कराना चाहिए, ताकि उनमें पानी रुक सके।
– हर साल जिले में बोरी बंधान और स्टाप डेम के नाम पर लाखों रुपए खर्च होते हैं, लेकिन पहली बारिश में ही यह बह जाते हैं और इनमें खर्च राशि भी बेकार चली जाती है। इसलिए अस्थाई की वजाय स्थाई कार्य पर ध्यान दिया जाए।