पीपलखेड़ा गांव के किसान बहादुरसिंह पुत्र सरदारसिंह यादव ने 10 जून को सेवा सहकारी संस्था ऊमरी के खरीदी केंद्र पर अपना चेना बेचा था, जिसका 1.10 लाख रुपए भुगतान होना था लेकिन इस बेचे गए चना की आज तक उनके खाते में राशि नहीं आई। इससे वह खरीदी केंद्र संचालक और बैंक के चक्कर काट रहे हैं। गनहारी निवासी किसान सुशील रघुवंशी पुत्र नथनसिंह रघुवंशी ने 9 जून को सेवा सहकारी संस्था सारसखेड़ी के खरीदी केंद्र पर 30 क्विंटल 50 किलो चना बेचा था, 4400 रुपए प्रति क्विंटल की रेट से उन्हें एक लाख 34 हजार 200 रुपए का भुगतान होना था लेकिन अब तक भुगतान नहीं हुआ।
हाथ से गई उपज, दूसरी फसलें भी हुईं खराब-
चार से पांच महीने तक कड़ाके की सर्दी और शीतलहर के बीच खेतों में खड़े रहकर फसलों की किसानों ने सिचाई की और मेहनत कर फसल तैयार की। लेकिन अच्छी रेट पाने के चक्कर में उनके हाथ से उपज भी चली गई। किसानों का कहना है कि यदि वह मंडी में बेचते तो जो भी कीमत मिलती, उससे वह अपना काम चला लेते, लेकिन सरकारी खरीद में बेचने से उनकी आफत बढ़ गई। भुगतान न मिलने से जहां वह न तो अपना कर्जा चुका पाए और न हीं बाद की फसलों की देखरेख कर पाए। इससे खरीफ और रबी सीजन की फसलें भी खराब हो गईं।
किसान बोले अब तो भगाने लगे अधिकारी-
किसानों का कहना है कि उपज हाथ से चली जाने के बाद वह आठ महीने से लगातार खरीदी केंद्र संचालकों और बैंकों के अलावा सरकारी ऑफिसों के चक्कर काट रहे हैं। दर्जनों शिकायतें करने के बाद भी उनका भुगतान कराने पर जिम्मेदार अधिकारी ध्यान तो दे ही नहीं रहे, वहीं अब किसान शिकायत करने पहुंचते हैं तो अधिकारी अब उन्हें देखते ही भगाने लगे हैं।
बड़ा सवाल: किसानों की समस्या पर अनदेखी क्यों?
विभाग ने आठ महीने पहले किसानों की उपज तो खरीद ली, लेकिन अब तक भुगतान नहीं किया। इससे जहां किसानों के कर्जा पर ब्याज बढ़ रहा है और बैंकों में वह ओवरड्यू हो चुके हैं। जबकि मंडी एक्ट के अनुसार यदि तय समय पर भुगतान नहीं होता है तो किसानों को ब्याज दिए जाने का नियम है। लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर किसानों की समस्या पर यह अनदेखी क्यों बरती जा रही है और जान-बूझकर अधिकारी किसानों का भुगतान रोककर क्यों उन्हें गलत कदम उठाने के लिए मजबूर कर रहे हैं।