मोह के कारण व्यक्ति को एक पल के लिए भी सुख नहीं मिलता फिर भी यह मेरा है यह तेरा
है इसी में उलझा रहता है: आर्यिका आदर्शमति
अशोकनगरPublished: May 21, 2022 05:28:30 pm
सुभाषगंज में चल रहा प्रतिभा स्थली वर्गीकरण सेमिनार
Talent Site Classification Seminar
अशोकनगर. संसारी जीव मोह के कारण ज्ञान भ्रमित हो गया है। आज से नहीं अनादि काल से अनंत काल से मोह के नशे के कारण हम संकल्प विकल्पों में पड़े हैं। अज्ञान के कारण कल्पना परिकल्पना में डूब कर संकल्प विकल्प करते रहते हैं। आचार्यश्री कहते हैं कि मोह के नशें में चूर व्यक्ति अपने व पराये किसी को नहीं छोड़ता यहां मोह के कारण ज्ञान ढंक जाता है। उक्त उदगार सुभाषगंज में प्रतिभा स्थली वर्गीकरण सेमिनार को संबोधित करते हुए आर्यिकाश्री आदर्शमति माताजी ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि मोह के कारण व्यक्ति को एक पल के लिए भी सुख नहीं मिलता फिर भी यह मेरा है यह तेरा है इसी में उलझा रहता है जिसका मोह संयम की चरित्र की खटाई से कम हुआ है वह इससे बच जाता है जो इसमें उलझा है वह उलझता ही चला जाता है यह संयोग संबंध नहीं है यह संश्लेषण है जैसे केले के छिलकों को निकाल कर अलग कर सकते हैं लेकिन कर्म को आत्मा से अलग नहीं कर सकते यह तो वैसी प्रक्रिया है जैसे स्वर्ण पाषाण से सोने को एक विशेष प्रक्रिया के माध्यम से पृथक कर देता है उसी तरह वस्तु स्वरूप को जानकर वेद विज्ञान द्वारा कर्मों से बचा जा सकता है।
भेदभाव तो हर घर में चल रहा है
आर्यिका माताजी ने कहा कि भेदभाव तो हर घर में हर परिवार में हर दिल में चल रहा है। एक बच्चा दूसरे बच्चे को मां की गोद में देख नहीं सकता एक ही मां के है दोनों बच्चे फिर भी दूसरे बच्चे को मां की गोद में नहीं देख सकता वह अभी बहुत छोटा है अभी उसे संसार के विषय में कुछ भी पता नहीं है फिर भी भेद कर रहा है। भेदभाव सारे इसी मोह के इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं जो नहीं है और जो हो नहीं सकता उसके लिए भी यह व्यक्ति अथक प्रयास कर रहा है, मतलब थकता नहीं है थकता है तो भी थकान महसूस नहीं होती थोड़ी थकान लगती है तो भी वह आराम नहीं करता।
व्यक्ति नशे में चूर होकर सब भूल जाता है
माताजी ने उदाहरण बताते हुए कहा कि एक राजा हाथी पर बैठकर नगर भ्रमण के लिए निकला रास्ते में एक लकड़हारा राजा से कहता है कि क्यों वे हाथी बेंचेगा। इसपर राजा ने लकड़हारे को जेल भिजवा दिया। सुबह राज दरबार में लकड़हारे से राजा ने कहा कि क्यों हाथी खरीदेगा तो वह लकड़हारा राजा का बहुत सम्मान करते हुए कहता है कि हे राजन मुझ गरीब की क्या औकात जो हमारे राजा सहाब के हाथी की तरफ आंख उठाकर देखें ये तो राजा सहाब की शोभा बढाऩे वाला है तब मंत्री कहते हैं कि राजन कल ये नहीं इसका नशा बोल रहा था व्यक्ति नशें में चूर हो कर सब भूल जाता है।
आचार्यश्री की परिकल्पना को माताजी ने लगाए पंख
मध्यप्रदेश महासभा के संयोजक विजय धुर्रा ने कहा कि संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज की परिकल्पना को आर्यिका रत्न आदर्शमति माताजी के अथक प्रयासों ने पंख लग दिये है। आज जो बहने वर्गीकरण सेमिनार में शामिल हो रही है, उन्होंने शिक्षा के सर्बोच्च मापदण्डो को प्राप्त कर संयमित जीवन के साथ अपनी निशुल्क सेवाये दे रही हैं। इनका कोई स्वार्थ नहीं है वस एक गुरु आज्ञा के पालन के लिए त्याग के पथ को रोक कर शिक्षा जगत के लिए अपनी सेवाएं दे रही है जिन्हें लाखों रुपए वेतन पर भी नहीं रखा जा सकता वह निस्वार्थ भाव से लगीं हैं। इनका अभिनंदन कर अभिभूत हैं। इसके पहले त्रिशला देवी वामा देवी महिला मंडल ने शैलेन्द्र श्रृंगार के मधुर भजनों के साथ आचार्यश्री की महा पूजन की।