पत्रिका टीम शुक्रवार को दिन में तीन बजे सीएमएचओ कार्यालय पहुंची, तो ऑफिस की बिल्डिंग की दीवार पर बाहर बड़े-बड़े अक्षर में डेंगू-मलेरिया से बचाव के तरीके और सावधानियां लिखी थीं। पत्रिका टीम जब दोनों कार्यालयों की छत पर पहुंची, तो पता चला कि ऑफिस की दीवारों पर जो सावधानियां लिखी हुई हैं, विभाग खुद ही उन पर अमल नहीं कर रहा है।
छत पर जगह-जगह बारिश का पानी जमा था और प्लास्टिक के छोटे-छोटे डिब्बों, ढ़क्कनों और कबाड़े में तब्दील हो चुके बैनरों में पानी भरा हुआ मिला। छत और कबाड़ में भरे पानी में हजारों की संख्या में डेंगू मच्छर का लार्वा भरा मिला।
जबकि मलेरिया अधिकारी डॉ.दीपा गंगेले शहर के सात वार्डों में डेंगू लार्वा का सर्वे हो जाने का दावा कर रही थीं। लेकिन जैसे ही उन्हें छत पर पनपे लार्वा की बात बताई तो कर्मचारी दौड़ते हुए ऑफिस की छत पर पहुंचे और छत पर पड़े बैनरों और डिब्बों में भरे पानी को फेंकने का प्रयास करते दिखे।
खास बात यह है कि कर्मचारियों ने जब ऑफिस में अधिकारियों को लार्वा होने की बात कही, तो मलेरिया अधिकारी कुर्सी पर ही बैठी रहीं और उन्होंने अपनी ही छत को देखना तक मुनासिब नहीं समझा।
अधिकारी के कहने पर पहुंचे मलेरिया विभाग के कर्मचारियों ने छत पर जमा लार्वा का मोबाइल से फोटो खींचा और डिब्बों में भरे पानी को नीचे फेंक दिया। जबकि विभाग खुद ही इस लार्वा को दवा डालकर नष्ट करने की बात कहता है। नीचे फेंक देने से लार्वा नष्ट नहीं हुआ और वह ऑफिस के पास नीचे भरे पानी में जाकर मिल गया। इससे विभाग की यह लापरवाही शहर के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
मलेरिया विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो जनवरी से अब तक विभाग को जिलेभर में मलेरिया के 92 और फैल्सीफेरम के 17 मरीज मिले। जबकि अस्पतालों में रोज तीन सैकड़ा से अधिक मरीज मलेरिया से पीडि़त पहुंच रहे हैं और मरीजों को मलेरिया के इलाज पर डेढ़ से दो हजार रुपए खर्च करना पड़ रहे हैं। वहीं मेडिकल स्टोरों पर रोजाना पहुंचने वाले लोगों में से 40 फीसदी मलेरिया की दवा खरीद रहे हैं।
विभाग गली-गली कर रहा तलाश, खुद की छत मच्छरों को पनाह
खास बात यह है कि विभाग की टीम सर्वे के दौरान गली-गली में डेंगू के लार्वा को तलाश रही है और उसे नष्ट करने का दावा भी कर रही है। इतना ही नहीं टीम और मलेरिया विभाग के अधिकारी शहरवासियों को बीमारी से बचने छतों पर कबाड़ न रखने, गमलों, खाली डिब्बों, पुराने टायरों व कूलरों में भरे पानी को फेंकने की सलाह दे रहे हैं।
इतना ही नहीं गर्मियों में पक्षियों की प्यास बुझाने के लिए पेड़ों पर टांगे गए सकोरों में भरे पानी को भी फेंकने की बात कही जा रही है। लेकिन विभाग की खुद की छत पर ही यह कबाड़, छोटे-छोटे डिब्बे, ढ़क्कनों और पुराने बैनरों में लार्वा भरा मिला। इससे विभाग की सजगता पर सवालिया निशान लग रहे हैं।