पत्रिका ने बुधवार को दोपहर डेढ़ बजे जिला अस्पताल के एनआरसी की हकीकत जानी। एनआरसी में गंभीर कुपोषित 16 बच्चे भर्ती थे, लेकिन वह भूख से बिलख रहे थे। वहीं एनआरसी की किचिन में ताला लटका हुआ था और किचिन के गेट के बाहर सिलेण्डर रखा हुआ था। जब वहां भर्ती बच्चों की माताओं से पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि सुबह 9 बजे बच्चों को दूध-दलिया मिला था। इसके बाद दोपहर डेढ़ बजे तक खाना नहीं मिला। वहीं कुपोषित बच्चों के साथ रुकी उनकी माताओं को भी देर से खाना मिला। हालांकि बाद में एनआरसी में कर्मचारियों के बीच सुगबुगाहट शुरू हो गई और दोपहर डेढ़ बजे दूध तैयार करने का काम शुरू हुआ। कर्मचारियों ने बताया कि किचिन में दो सिलेण्डर थे और एक सिलेण्डर खाली हो जाने पर कर्मचारियों ने अस्पताल को सूचना दी थी कि दूसरा सिलेण्डर भी कभी भी खाली हो जाएगा। वहीं बुधवार सुबह भी अस्पताल को गैस सिलेण्डर खत्म होने की सूचना दी गई थी। देरी से सिलेण्डर आने की वजह से कुपोषित बच्चों की डाइट तैयार करने का काम देरी से शुरू हो सका।
हर दो घंटे में मिलना चाहिए बच्चों को डाइट एनआरसी में गंभीर कुपोषित बच्चों को भर्ती किया जाता है। जहां पर साढ़े पांच महीने उम्र का झागर निवासी अभिषेक भर्ती था, जिसका वजन तीन किलो 490 ग्राम है। वहीं सिलवारा निवासी एक वर्षीय सोना आदिवासी का वजन चार किलो 26 5 ग्राम है, जो बहुत कमजोर है। इसके अलावा अन्य बच्चों की भी ऐसी ही स्थिति थी। नियमानुसार एनआरसी में भर्ती कुपोषित बच्चों को हर दो घंटे में डाइट मिलना चाहिए, ताकि वह सुपोषित हो सकें। लेकिन समय पर डाइट न मिलने से बच्चों को परेशान होना पड़ा।
जिले में हजारों की संख्या में है कुपोषित बच्चे जिले में कुपोषण मिटाने के लिए दावे तो किए जाते हैं और कुपोषण के नाम पर हर माह करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। लेकिन कुपोषण खत्म नहीं हो पा रहा है और जिले में हजारों की संख्या में कुपोषित बच्चे हैं। विभाग सिर्फ कुपोषित बच्चों केा लाकर एनआरसी में भर्ती करा देता है, उसके बाद उन पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। इससे सवाल यह उठ रहा है कि आखिर ऐसे गंभीर मामले पर लापरवाही क्यों बरती जा रही है।
बोर्ड भी खाली, बच्चों की जानकारी नहीं दर्ज एनआरसी केंद्र में प्रत्येक बच्चे के पलंग के पास बोर्ड लगा हुआ था। बोर्ड पर बच्चे का नाम, उम्र, वजन और भर्ती दिनांक के साथ फोटो लगना चाहिए, वहीं बच्चे की मां का नाम, उम्र, वजन दर्ज की जाती है। लेकिन एनआरसी में ज्यादातर बोर्ड खाली थे, जिन पर न तो बच्चे का नाम दर्ज था और न हीं वजन और उम्र। वहीं बोर्ड पर किसी भी बच्चे का फोटो भी नहीं लगा था। इससे यह बात सार्वजनिक नहीं थी कि कौन सा बच्चा कब भर्ती हुआ और भर्ती के समय वजन क्या था और अब हालत में कितना सुधार हुआ।
ये बोले जिम्मेदार हमारा काम सिर्फ कुपोषित बच्चों को लाकर एनआरसी में भर्ती कराना है, उसके बाद जिला अस्पताल की जिम्मेदारी शुरू हो जाती है। खाना देने और मैनेजमेंट सहित एनआरसी के सभी काम जिला अस्पताल करती है। मैं जानकारी लूंगा कि समय पर खाना क्यों नहीं मिला।
जयंत वर्मा, जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी अशोकनगर