दरअसल, अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में लौटने से चीन की परेशानी बढ़ सकती है। चीन को डर है कि बलूचिस्तान के विद्रोही तालिबान से हथियार पाकर पाकिस्तान-चीन इकोनॉमिक कोरिडर ( CPEC ) में बाधा पहुंचा सकते हैं। इतना ही नहीं चीन को यह भी डर लगने लगा है कि यदि तालिबान सत्ता में आ जाता है तो शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुसलमान विद्रोह कर सकते हैं।
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बता दें कि अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार हबीबा आशना ने पजवोक न्यूज एजेंसी के लिए एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने चीन के इस डर को उजागर किया है। हबीबा आशना ने अपने लेख में लिखा है कि शिनजियांग प्रांत की सुरक्षा सीधे तौर पर बीजिंग के मार्च ईस्ट स्ट्रेटजी से जुड़ी हुई है। इसमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मध्य एशिया के देशों में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की भी अहम भूमिका है। चीन अपने इस प्रोजेक्ट को बचाने के लिए हर कीमत पर उइगुर मुस्लमानों पर नियंत्रण चाहता है। ऐसे में अब यदि अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में वापसी करता है तो चीन के लिए खतरा बढ़ सकता है।
पाकिस्तान से चीन को मदद की उम्मीद
रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबान की सहायता कर रहा है। पाकिस्तान चाहता है कि अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी हो ताकि वे अपने हिसाब से चला सकें, लेकिन इसके ठीक उलट चीन नहीं चाहता है कि तालिबान सत्ता में लौटे। ऐसे में अब चीन को अपने दोस्त पाकिस्तान से मदद की उम्मीद है। चीन चाहेगा कि वह पाकिस्तान की मदद से इस क्षेत्र में जारी इस्लामिक आतंकवाद पर लगाम लगाए। ताकि इन तमाम परियोजनाओं पर कोई खतरा न हो।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान और चीन के बीच पुराना संबंध है। इसके बावजूद अब चीन को तालिबान से डर लगने लगा है। 1990 के दशक में जब अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान का कब्जा था तब चीन का तालिबान से अच्छा संबंध था। चीन को कभी भी तालिबान के खिलाफ बोलते हुए किसी भी मंच पर आजतक नहीं देखा गया है। इसके बावजूद चूंकि तालिबान पर चीन की सीधी पकड़ नहीं है, लिहाजा अब अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट की सुरक्षा को लेकर तालिबान से डर लगने लगा है। अब चीन पाकिस्तान की मदद से ही तालिबान के साथ कोई डील कर सकता है।
आपको बता दें कि कतर की राजधानी दोहा में अफगान सरकार और तालिबान के बीच शांति वार्ता जारी है। दोनों पक्षों की तरफ से स्थायी संघर्ष विराम, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकार और हजारों की संख्या में तालिबान लड़ाकों का हथियार छोड़ना जैसे तमाम मुद्दों पर सहमति बनाने को लेकर बातचीत हो रही है।