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बैंकॉक में दो दिवसीय आसियान शिखर सम्मेलन का आगाज, दक्षिण चीन सागर समेत कई मुद्दों पर चर्चा

Asean Summit: थाइलैंड के राजधानी बैंकॉक में दो दिवसीय आसियान शिखर सम्मेलन की बैठक शुरू।

Jun 23, 2019 / 11:26 pm

Anil Kumar

Asean Summit: बैंकॉक में दो दिवसीय आसियान शिखर सम्मेलन का आगाज, दक्षिण चीन सागर समेत कई मुद्दों पर चर्चा

बैंकॉक। थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में शनिवार को दो दिवसीय आसियान शिखर सम्मेलन की शुरुआत हुई। दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के नेताओं ने पहले दिन कई अहम मुद्दों पर चर्चा की। हालांकि इस पहले दिन यह स्पष्ट नहीं हो सका कि 10-देशों के इस समूह दक्षिण चीन सागर में विवादों पर क्या प्रगति कर सकते हैं और म्यांमार से भाग रहे रोहिंग्या की दुर्दशा पर आगे क्या कदम उठा सकते हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ ( ASEAN ) की स्थापना को आधी सदी के करीब हो चुके हैं और इस दौरान ऐतिहासिक रूप से इस क्षेत्र की चुनौतियों का सामना किया है। किसी भी मामले पर सदस्य देशों के साथ आम सहमति के जरिए ही काम करता है। जबकि किसी सदस्य देश के लिए आंतरिक माना जाने वाले किसी भी मामले में शामिल होने से खुद को अलग रखता है।

बता दें कि आसियान की स्थापना 8 अगस्त 1967 को हुई थी। इसका मुख्यालय इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में हैं। थाईलैंड, इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, ब्रुनेई, म्यांमार (बर्मा), कंबोडिया, लाओस इसके सदस्य देश हैं।

दक्षिण चीन सागर पर विवाद

आसियान देशों के बीच दक्षिण चीन सागर को लिकर लंबे समय से विवाद है। आसियान के सभी देश इसमे अपनी दावेदारी करते हैं। दक्षिण चीन साग सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में से एक है।

आसियान शिखर सम्मेलन में सभी सदस्य देशों को उम्मीद है कि इस बारे में कोई कोड ऑफ कंडक्ट ( CoC ) बनाया जाएगा, जिसका पालन सभी सदस्य देशों को करना होगा। इंडोनेशिया के पूर्व विदेश मंत्री मार्टी नटालगावा ने कहा कि यह देखना उत्साहजनक है कि CoC पर आसियान-चीन की वार्ता जारी है। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही अहम होगा कि CoC जमीन पर ज्यादा दिखेगा या फिर समुद्र में।

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रोहिंग्या पर चिंता

अधिकार समूहों ने रोहिंग्या समुदायों को लेकर चिंता व्यक्त की और आसियान देशों से रोहिंग्याओं की वापसी को लेकर कुछ नए पहल करने का आह्वान किया। कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि रोहिंग्या ऐसी विषम परिस्थिति में लौटते हैं तो उन्हें भेदभाव और उत्पीड़न का शिकार होना पड़ सकता है।

यूएन एजेंसियों की एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में 700,000 से अधिक रोहिंग्या सीमा पार कर बांग्लादेश में रह रहे हैं।

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