काम आया गोखले का प्रयास
1981 बैच के आईएफएस (इंडियन फोरेन सर्विस) विजय केशव गोखले ने डोकलाम मुद्दे पर भारत और चीन के बीच वार्ता को लेकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी का नतीजा है कि लंबी तनातनी और युद्ध जैसे हालात के बावजूद दोनों देशों के बीच न केवल बातचीत के रास्ता निकल सका, बल्कि पूरे डोकलाम विवाद का ही पटाक्षेप हो गया। इसके साथ ही डोकलाम विवाद विजय केशव गोखले के कार्यकाल का शायद अंतिम ऐसा मुद्दा बना जिसको निपटाने में उन्होंने अपनी कूटनीतिक क्षमता का लोहा मनवाया। बता दें कि बीजिंग में भारतीय राजदूत विजय कुमार गोखले का कार्यकाल पूरा होने वाला है और वो जल्द ही दिल्ली स्थित विदेश मंत्रालय के सचिव (आर्थिक संबंध) का पद संभालेंगे।
डोभाल के हाथ लगी थी असफलता
पिछले माह ब्रिक्स समिट के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की एक बैठक में हिस्सा लेने गए भारतीय एनएसएस अजीत डोभाल ने बीजिंग में भारत का पक्ष जोरदार तरीके से रखते हुए कहा कि क्योंकि वो क्षेत्र भूटान का हिस्सा था लिहाजा जिस तरह इस हिमालयी देश के साथ भारत की पूर्व में संधि है उसके चलते भारत ने उसकी सुरक्षा में यह कदम उठाया है। चीन के सख्त रुख के चलते डोभाल की चीन से बातचीत कूटनीतिक मोर्चे पर दोनों देशों के तनाव को कम करने में असफल रही। ऐसा माना जा रहा है कि इस बातचीत में डोभाल ने जवाब दिया कि जिस जगह को लेकर विवाद है वो चीन का क्षेत्र नहीं है बल्कि उस पर भूटान की तरफ से दावा किया जाता रहा है।
मोदी और जिनपिंग की वार्ता से नहीं निकला था हल
यही नहीं डोकलाम पर विवाद के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग 7 जुलाई को जी-20 बैठक से इतर हैमबर्ग में मिले थे। इस बैठक में पीएम मोदी ने राष्ट्रपति जिनपिंग से कहा था कि इस विवाद को और ना बढऩे दिया जाना चाहिए और उन्होंने सुझाव दिया था कि इस पर राष्ट्रीय सुरक्षा स्तर पर कूटनीतिक बातचीत होनी चाहिए।