नई दिल्ली। अपने पहले ही मिशन में मंगल की कक्षा में मंगलयान को स्थापित करा चुके भारतीय वैज्ञानिक अब यान को इस ग्रह की सतह पर उतारने की तैयारी में है। यह यान अंतरिक्ष में खोज की दिशा में रोचक शुरूआत करा सकता है। यही वजह है कि फ्रांस इस मिशन पर भारत के साथ मिलकर काम करने को तैयार है। मंगल पर लैंडिंग की सफलता के बाद, इसरो के कदम शुक्र ग्रह के लिए भी चल पडेंग़े। हाल ही फ्रांसिसी राष्ट्रपति ओलांद के भारत दौरे के बाद फ्रेंच स्पेस एजेंसी ने इसरो के साथ काम करने की बात कही। मंगल अभियान से जुड़े सवाल पर एजेंसी के चीफ ने बताया कि प्रोजेक्ट पर दोनों देशों के बीच समझौता हुआ है। उन्होंने संकेत दिए कि फ्रांस भारत के अगले मंगल अभियान में सहयोग देगा। उन्होंने कहा कि इंडिया का अगला मंगल अभियान फ्रांस की विशेषज्ञता का एक हिस्सा होगा। भारत के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की लंबी परंपरा पर फ्रांस को गर्व है। अब हम अंतरिक्ष में खोज के क्षेत्र में भी उसके साथ होंगे। आसान नहीं है डगर, फिर भी लाल ग्रह पर उतरेंगे फ्रेंच स्पेस एजेंसी का मानना है कि भारत का मार्स मिशन दूरगामी परिणाम लाएगा। यान अभी ग्रह की कक्षा में है और अभी इसे मंगल पर उतारा जाना बाकी है। बता दें कि फ्रांस यूरोपीय यूनियन का सदस्य है और उसकी सीएनईएस यूरोपीय यूनियन एजेंसी (ईएसए) में भागीदारी है। भारत के साथ समझौते के लेकर सीएनईएस चीफ ने कहा कि वे लाल ग्रह पर खोज से जुड़ी भारत की महत्वाकांक्षा से वाकिफ हैं। भारत जो कुछ मार्स आर्बिटर के साथ करने जा रहा है, उससे इंप्रेस भी हैं। जब मंगलयान कक्षा में है तो वह मंगल पर उतरेगा भी। हालांकि यह आसान नहीं है फिर भी हम आशावादी हैं।’ उन्होंने कहा कि मंगल और शुक्र (वीनस) के लिए फ्रांस के पास निपुण वैज्ञानिकों की टीम है और चूंकि भारत के पास मंगल पर खोज के लिए पहले से ही एक प्रोजेक्ट मौजूद है, इसलिए दोनों ने फ्यूचर के लिए एंग्रीमेंट किया है। क्या है भारत का मार्स ऑर्बिटर मिशन मार्स आर्बिटर मिशन यानी ‘मॉम’ भारत का पहला मंगल मिशन है। भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो द्वारा 2013 में प्रेक्षपण के बाद 24 सितंबर 2014 को मंगलयान ने मंगल की कक्षा में एंट्री कर इतिहास रच दिया। विश्व में यह पहला ऐसा मिशन था, जो फस्र्ट लॉन्चिंग में ही कामयाब हो गया। इससे पहले जापान, चीन, रूस और अमेरिका जैसे देश भी ऐसा नहीं कर पाए थे। नासा को भी कई कोशिशें करने के बाद इसमें सफलता मिली। भारत का मंगलयान दुनिया का 53वां मिशन है, जबकि यूरोपीय यूनियन के कई आर्बिटर मार्स के लिए पहले ही रवाना हो चुके थे। मंगलयान से देश को मिल रहे यह फायदे हर भारतीय से औसतन 4 रुपए लेकर मंगल तक पहुंचे यान ने देश को दुनिया के उस विशिष्ट क्लब में स्थापित करा दिया जो मार्स मिशन में कामयाब हुए अथवा जुड़े हुए हैं। कक्षा में स्थापित किए जाने के बाद इससे भारतीय वैज्ञानिकों को इस ग्रह के वायुमंडल, खनिजों और संरचना की रिपोर्ट मिलने में आसानी हुई। मंगल यान से अब तक दर्जनों तस्वीरें भेजी जा चुकी हैं, जिससे इसरो के अतंरिक्ष में खोज अभियान को बल मिला है। यह दुनिया का सबसे सस्ता मंगल अभियान रहा। पहली बार भारत ने ही चांद पर पानी होने की पुष्टि की थी। इसी तरह मंगल से सटीक जानकारी पाने के लिए मंगलयान के साथ 5 विशेष उपकरण भेजे गए। जिनका कुल वजन 15 किलो था। – मीथेन सेंसर: मंगल के वातावरण में मीथेन गैस की मात्रा मापने इस उपकरण को मंगलयान में जोड़ा गया। मंगल पर मीथेन कहां से आ रही है इसका स्रोत भी इससे पता चलेगा।– थर्मल इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर: मंगल की सतह का तापमान पता करने और तापमान के निकलने का स्त्रोत ज्ञात करने में इस उपकरण की भागीदार महत्वपूर्ण है। इससे मंगल के सतह की संरचना और वहां मौजूद खनिज के बारे में भी इनपुट मिलेंगे। – मार्स कलर कैमरा: उच्चकोटि का यह कैमरा, जो कि मंगल के फोटो खींच कर भेजने के लिए जोड़ा गया। अब तक इससे दर्जनों तस्वीरें मिल चुकी हैं।– लमेन अल्फा फोटोमीटर: मंगल के ऊपरी वातावरण में ड्यूटीरियम तथा हाइड्रोजन की मात्रा मापेगा।– मंगल इक्सोस्फेरिक न्यूट्रल संरचना विश्लेषक: यह बाहरी हिस्से में जो कण मिलेगें उसकी जांच के लिए आर्बिटर के साथ भेजा गया था। इन सबके अलावा यह मिशन इसलिए भी अहम है, क्योंकि इससे भारत के लिए दूसरे ग्रहों की जांच करने के सफल अभियानों की शुरुआत हुई।