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पाकिस्तान: आतंकवाद पर जाहिर हुआ इमरान खान का दोहरा रवैया, हाफिज सईद के संगठनों से हटा बैन

locationनई दिल्लीPublished: Oct 26, 2018 12:38:27 pm

पाकिस्तान में सत्ता बदलने के बाद भी आतंकवाद को लेकर उसका रवैया बदलता नहीं दिख रहा है

लाहौर। आतंकवाद पर पाकिस्तान के नए पीएम इमरान खान का दोहरा रवैया खुलकर सामने आ गया है। एक तरफ इमरान खान भारत से शांति वार्ता की अपील करते हैं तो दूसरी तरफ उनकी सरकार ग्लोबल आतंकी हाफ़िज़ सईद के संगठनों से बैन हटा रही है। भारत में 26/11 हमलों के मास्टर माइंड आतंकी हाफिज सईद के जमात उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत नामक संगठनों को पाकिस्तान ने प्रतिबंधित संगठनों की सूची से हटा दिया है।

सत्ता बदली, रवैया नहीं

पाकिस्तान में सत्ता बदलने के बाद भी आतंकवाद को लेकर उसका रवैया बदलता नहीं दिख रहा है। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र की कड़ाई के बाद पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश जारी करके आतंकी हाफिज सईद के संगठनों को बैन कर दिया था। तब पाकिस्तान ने इस कदम के जरिए दुनिया के सामने यह दिखाया था कि उसने आतंकियों के खिलाफ बड़ा ऐक्शन लिया है। लेकिन अब पाकिस्तान की सत्ता इमरान खान के हाथ है जो सेना के दवाब में तकरीबन सरेंडर करते आ रहे हैं। बता दें कि यही इमरान खान चुनावों के समय आतंक पर शिकंजा कसने के दावे कर रहे थे।

जमात से हटा प्रतिबंध

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने एक अध्यादेश जारी करते हुए आतंकवाद विरोधी अधिनियम 1997 में संशोधन किया था। संशोधन के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की लिस्ट में दर्ज आतंकियों के नाम और उनके संगठनों को बैन कर दिया गया था। इसी के तहत हाफिज के दोनों संगठनों को बैन कर दिया गया था। हाफिज ने अपने संगठनों को बैन करने के अध्यादेश को कोर्ट में चुनौती दी थी। अपनी याचिका में सईद ने दावा किया था कि यह अध्यादेश पाकिस्तान की संप्रभुता और संविधान के खिलाफ है। इससे पहले कोर्ट ने सईद के संगठनों को दान लेने की आजादी दे दी थी। सईद द्वारा इस्लामाबाद हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि अध्यादेश अब वैध नहीं है क्योंकि पाकिस्तान की मौजूदा इमरान खान सरकार ने इसे आगे नहीं बढ़ाया है। सईद के वकील राजा रिजवान अब्बासी और सोहेल वारराइच ने गुरुवार को इस्लामाबाद उच्च न्यायालय से कहा कि अध्यादेश समाप्त हो चुका है और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ सरकार द्वारा विस्तारित नहीं किया गया है। वकील ने न्यायमूर्ति आमिर फारूक को सूचित किया कि अध्यादेश न तो वर्तमान सरकार द्वारा बढ़ाया गया था और न ही इसे पाकिस्तान संसद में इसे एक अधिनियम का रूप देने के लिए प्रस्तुत किया गया है।

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