हालांकि, दूसरों की जान बचाने वाला यह मसीहा खुद बड़ी आपदा से जूझ रहा है। बीते साल भर से वह अंतिम चरण में पहुंच चुके फेफड़ों के कैंसर का इलाज करा रहे हैं। यह वह चरण है, जब कैंसर दूसरे अंगों तक भी पहुंच जाता है। असहनीय दर्द और करीब 21 किलो वजन घटने के बावजूद वह देश में आने वाली आपदा में तत्पर नजर आते हैं।
कीमोथेरेपी करा रहे सुतोपो कहते हैं कि जब भी देश पर कोई आपदा आती है तो मैं भूल जाता हूं कि बीमार हूं। जब मैं कुछ नहीं कर रहा होता हूं और घर पर रहता हूं तभी यह दर्द महसूस होता है। 49 वर्षीय सुतोपो को लोग प्यार से टोपो कहकर बुलाते हैं। सोशल मीडिया पर भी उनके चाहने वालों की भरमार है।
आपदाओं से नाता है इस देश का इंडोनेशिया एक ऐसा देश है जहां कोई न कोई आपदा आती रहती है। भूकंप, ज्वालामुखी, बाढ़ , भूस्खलन और सुनामी जैसी आपदाएं तो इस देश के लिए आम हैं। 2007 के बाद इस साल सबसे भीषण भूकंप आया था।
जावा के समंदर में समा गया था विमान सुलावेसी में आए भूकंप से तटीय इलाकों में सुनामी आ गई थी। करीब 2,000 लोग मारे गए थे। बीते हफ्ते ही एक बोइंग जेट जावा के समुद्र में जा गिरा था, जिसमें सवार सभी 189 लोग मारे गए थे। सुतोपो हादसे के बारे में बिना सोए पल-पल की खबरें दे रहे थे।
जब भी जरूरत पड़ती है बिना रुके-थमे काम सुतोपो आपदा शमन एजेंसी की बीते आठ साल से आवाज बने हुए हैं। लोगों को आपदा की सूचनाएं देते हैं और मौके पर मदद करने जाते हैं। सुतोपो भले ही खुद मौत से जूझ रहे हों, मगर वह अपनी जिंदगी को सहज बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। वह चित्रकारी के साथ-साथ कविता भी लिखते हैं। जावा में जन्मे सुतोपो ने जलवायु परिवर्तन में पीएचडी की है।